यहाँ पानी नहीं, तपस्या बहती है।
गोमुख से निकली ठंडी हवा शरीर को जागृत कर देती है।
भागीरथी की लहरें मन के विचारों को शांत कर देती हैं।
यहाँ ध्यान करने के लिए किसी प्रयास की जरूरत नहीं होती।
नदी की आवाज़ ही मंत्र बन जाती है।
पर्वतों के बीच खड़े होकर व्यक्ति खुद को भूल जाता है।
यहाँ मन अपने-आप हल्का हो जाता है।
संकेत मिलता है — जीवन बहुत सरल है।
भागीरथी आत्मा के दरवाजे खोल देती है।
यहाँ ध्यान
होता नहीं — अपने आप हो जाता है।
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