युद्ध के पश्चात अपने भाइयों बंधुओं को अपने हाथों से मारने के पश्चात उन्हें पश्चाताप हो रहा था।
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तो इसका प्रायश्चित करने के लिए पांडव इस जगह आए। वे इस पाप से मुक्ति होना चाहते थे।
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इस पाप का समाधान जब उन्होंने वेदव्यास जी से पूछा तो उन्होंने कहा कि अपने भाई बंधुओं की हत्या का पाप से मुक्ति तभी मिल पाएगा।
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जब भगवान शिव इस पाप से मुक्ति प्रदान करेंगे।
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जब भगवान शिव इस पाप से मुक्ति प्रदान करेंगे। शिव भगवान पांडवों से प्रसन्न नहीं थे।
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जब पांडव विश्वनाथ के दर्शन के लिए काशी पहुंचे।तब भगवान शिव प्रकट नहीं हुए। शिव भगवान को ढूंढते हुए पांचो पांडव केदारनाथ पहुंचे।पांडवों को आता देखकर।
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शिवजी ने बैल का रूप धारण कर लिया तथा बैलों के झुंड में शामिल हो गए।
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शिवजी की पहचान करने के लिए भीम एक गुफा के पास पैर फैलाकर खड़े हो गए। सभी बैल उनके पैरों के बीच में से होकर निकलने लगे।
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लेकिन बैल बने भगवान शिव ने पैर के बीच से जाना स्वीकार नहीं किया। इससे पांडवों ने शिव भगवान को पहचान लिया। इसके बाद शिव भगवान वहां भूमि में गायब होने लगे।
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तब बैल बने भगवान शिव को भीम ने पीठ की तरफ से पकड़ लिया। भगवान शिव पांडवों की भक्ति तथा दृढ़ निश्चय को देखकर प्रकट हो गए