एक बार राजा कल्याण चंद्र अपनी पत्नी के साथ बागनाथ मंदिर में गए और संतान के लिए भगवान से प्रार्थना करने लगे। 

बागनाथ भगवान की कृपा से उनके घर बेटा हो गया। जिसका नाम निर्भय चंद्र रखा गया। निर्भय को उसकी मां प्यार से "घुघुती" कह कर पुकारती थी। 

घुघुती के गले में एक मोती की माला थी। जिसमें घुंघरू लगे हुए थे। यह माला पहनकर राजा का बेटा बहुत ही खुश रहता था। जब कभी भी जब राजा का बेटा किसी भी चीज की जिद करता था। 

तो उसकी मम्मी उसे डराने के लिए कहती थी। ज्यादा जिद ना कर नहीं तो मैं यह माला कौवे को दे दूंगी। 

इसे वह पहाड़ी भाषा में कहती थी "काले कौवा काले घुघुती माल खाले" यह सुनकर कई बार कौवे आ भी जाते थे। जिसको देखकर घुघुती जिद छोड़ देता था । 

जब घुघुती की मां के बुलाने पर कौवे आ जाते थे।तो वह कौवे को कोई भी चीज खाने को दे देती थी। धीरे-धीरे घुघुती की कौवौ के साथ दोस्ती हो गई। 

दूसरी तरफ मंत्री जो की राज पाठ के उम्मीद करें बैठा था। उसे घुघुती को देखकर बहुत गुस्सा आता था। उसने सोचा क्यों ना इसे मार दिया जाए। ताकि यह राजगद्दी उसे मिल जाए। 

मंत्री ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर षड्यंत्र रचना शुरू कर दिया। एक दिन जब घुघुती खेल रहा था।तब उसने चुपचाप घुघुती को वहां से उठा लिया और घुघुती को जंगल की ओर ले गया। 

तो एक कवि ने देख लिया और जोर-जोर से काव-काव करने लगा। उसकी आवाज सुनकर घुघुती जोर-जोर से रोने लगा और अपनी माला को उतार कर दिखाने लगा। 

इतने में बहुत सारे कौवे इक्कठे हो गए और मंत्री और उसके साथियों के ऊपर घुमने लगे। एक कौवे ने घुघुती के हाथ से माला ले ली और सभी कौवे ने एक साथ मंत्री और उसके साथियों पर हमला कर दिया। 

पंजों के हमला से मंत्री और उसके साथी घबराकर वहां से भाग खड़े हुए। घुघुती जंगल में अकेला रह गया। वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया। तभी सभी कौवे भी उसी पेड़ में बैठ गए।

एक कौवे हार लेकर महल गया था। वह सीधे महल में जाकर एक पेड़ पर माला लटक कर जोर-जोर से बोलने लगा।