आदि बद्री को हेलिसेरा के रूप में राजस्व रिकॉर्ड में भी जाना जाता है। यहां पर बहुत ही सुंदर परिवेश में स्थापित है और लोहबा से आदि बद्री तक का सड़क बहुत ही सुंदर इलाकों से गुजरती है। जो की मन को मोह लेती है तथा यह जगह देखने लायक है।आदि बद्री के ठीक ऊपर एक छोटी झील है जिसका नाम बेनिताल है।
आदि बद्री का इतिहास
आदि बद्री में 16 मंदिरों का अवशेष है।जो द्वाराहाट के समान है। यहां बद्रीनाथ को समर्पित एक मंदिर को पूजा के लिए अभी आज भी प्रयोग किया जाता है।
आदि बद्री पांच बद्रियों में से एक है। यह स्थान हल्द्वानी मार्ग पर कर्णप्रयाग से 17 किलोमीटर दूरी पर चंदनपुरी गांव में 3 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। इसका निकट तीर्थ करणप्रयाग है।जो की पांच प्रयागों में से एक है। यह काफी प्राचीन मंदिरों में से एक है।
इस मंदिर का निर्माण स्वर्ग रोहिणी पथ पर उत्तराखंड आए। पांडवों द्वारा किया गया था। कहा जाता है कि इसका निर्माण आठवीं सदी में शंकराचार्य द्वारा पुनः हुआ। भारतीय इतिहासकारों के अनुसार इसका निर्माण आठवीं से 11वीं शताब्दी के बीच कस्तूरी राजाओं द्वारा कराया गया था।
कुछ वर्षों से इस मंदिर की देखभाल भारतीय पुरातात्विक के संरक्षण अधिनियम हो गया है।इस मंदिर में 16 मंदिरों का समूह थे।जिसमें से 14 अभी बचे हैं। प्रमुख मंदिर भगवान विष्णु का है। जिस की पहचान इसका बड़ा आकार तथा ऊंची मंच पर निर्मित होता है।
वहां पर एक सुंदर काली ऊंचा शालिग्राम भी मंदिर में दर्शाया गया है। अपने चतुर्भुज रूप में खड़े तथा गर्भ ग्रह के अंदर स्थित आदि बद्री मंदिर के कपाट पोस माह के लिए बंद कर दिए जाते हैं तथा मंदिर के कपाट मकर संक्रांति के दिन खोल दिए जाते हैं।
इसके पास एक छोटा मंदिर भी है। जो विष्णु की सवारी गरुड़ भगवान को समर्पित है। मंदिर के अंदर अलग-अलग देवी देवताओं की मूर्तियों पर स्थापित है।
जिसमें सत्यनारायण भगवान, लक्ष्मी देवी, अन्नपूर्णा देवी ,कुबेर देवता,राम, लक्ष्मण ,सीता मां, महाकाली ,भगवान शिव, गौरी शंकर ,हनुमान जी जैसे देवी देवताओं को समर्पित है।इस मंदिर की कलाकारी नक्काशी तथा प्रत्येक मंदिर के नक्काशी, भाव और मंदिर की सुंदरता पर चार चांद लगा देते है।
आदि बद्री मंदिर के पुजारी
आदि बद्री धाम के पुजारी थापली गांव के ब्राह्मण होते हैं। जो कि पिछले 700 सालों से इस मंदिर के पुजारी हैं।
आदि बद्री के दर्शन का समय
आदि बद्री के कपाट मकर संक्रांति के दिन खुल जाते हैं तथा पोष माह में बंद कर दिए जाते हैं। इस बीच आप कभी भी मंदिर में आ सकते हैं।
आदि बद्री धाम कैसे पहुंचे
हवाई यात्रा द्वारा
आदि बद्रीनाथ का सबसे निकटतम हवाई अड्डा देहरादून हवाई अड्डा है । देहरादून हवाई अड्डे की दूरी आदि बद्री से लगभग 210 किलोमीटर की दूरी है।देहरादून हवाई अड्डे से आदिबद्री के लिए आप टैक्सी या बस कर सकते हैं।
ट्रेन मार्ग द्वारा
ऋषिकेश ,हरिद्वार और देहरादून सभी के पास रेलवे स्टेशन है। यहां से आदिबद्री का निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। जो लगभग 192 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऋषिकेश से आदिबद्री के लिए बस, टैक्सी आराम से उपलब्ध है।आप बस, टैक्सी किसी से भी आदिबद्री आ सकते हैं।
सड़क के द्वारा
कर्णप्रयाग से 19 किलोमीटर की दूरी पर आदि बद्री स्थित है। कर्णप्रयाग आने के लिए आप दिल्ली ,लखनऊ देश के किसी भी कोने से बस के द्वारा आसानी से कर्णप्रयाग तक आ सकते हैं। यहां से आप गाड़ी, टैक्सी किसी भी यातायात के साधन से आदि बद्री पहुंच सकते हैं।
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