गढ़वाल मंडल में स्थित बद्रीनाथ मार्ग पर पंच प्रयाग जिसमें विष्णु प्रयाग ,नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग और देवप्रयाग है। केदार खंड के अंदर गढ़वाल भूभाग में पंचबदरी तथा पंच केदार के बाद ही पंच प्रयाग आज भी धर्म एक श्रद्धालुओं के जनमानस के लिए काफी प्रसारित है।
महाभारत में देवलोक तथा देवभूमि का क्षेत्र वह जगह बताई गई है। जहां से पतित पावनी गंगा अलकनंदा के नाम से प्रचलित है। आज हम आपको अपने आर्टिकल में पंच प्रयाग के बारे में बताएंगे।
पंच प्रयाग कौन-कौन से हैं?
विष्णु प्रयाग (1372 मी)
विष्णुप्रयाग की ऊंचाई समुद्र तल से 1372 मीटर की ऊंचाई पर है। बद्रीनाथ मार्ग पर जोशीमठ से लगभग 10 किलोमीटर आगे अलकनंदा वे विष्णु गंगा जिसे धोली नाम से भी जाना जाता है। कि संगम पर स्थित विष्णु प्रयाग तीर्थ है। यहां से सूक्ष्म बद्रीनाथ क्षेत्र प्रारंभ होता है।

विष्णु प्रयाग संगम आवास रहित एवं दुर्गम है।यहां पर विष्णु भगवान की पूजा होती है। मुख्य मार्ग पर विष्णु भगवान का मंदिर है। कथाअनुसार कहा जाता है कि यहां पर देव ऋषि नारद ने अष्टाक्षरी मंत्रों का जाप किया था।
विष्णु भगवान की आराधना कर उनके साक्षात दर्शन करके।यहां से वरदान प्राप्त किया था। यहां पर संगम के दोनों और जय ,विजय पर्वत भी हैं। जिन्हें विष्णु भगवान के द्वारपाल कहा जाता है।ऐसा लगता है जैसे यह दोनों पर्वत आज भी भगवान विष्णु के द्वारपाल बनकर खड़े हो।
यहां पर धौली गंगा की जल राशि अलकनंदा से इतनी अधिक है कि वह काफी दूर तक अलग बहती दिखाई देती है। यहां के संगम पर तीव्र गर्जन युक्त ध्वनियों के कारण स्थाई निवासी नगण्य है।
नंदप्रयाग (764 मी)
नंदप्रयाग समुद्र तल से 764 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह जगह ऋषिकेश बदरीनाथ मार्ग पर अलकनंदा वे मंदाकिनी के संगम पर स्थित है। यह एक तीर्थ स्थान है। यह जगह बेहद ही खूबसूरत पहाड़ियों से गिरा हुआ क्षेत्र है।
जो देखने में बेहद ही खूबसूरत दिखाई पड़ता है।पौराणिक कथाओं के अनुसार सत्यवादी महाराजा नंद ने यहां पर भगवान की तपस्या की थी। यहां से स्थूल बद्रीनाथ क्षेत्र प्रारंभ होता है। केदार खंड पुराणों में नंदग्राम की महिमा का इस प्रकार वर्णन है-
दुरात्मानोऽपि गच्छन्ति पदं दुःख विवर्जितम्। नन्दप्रयागे स्नात्वा सम्पूज्य च रमा पतिम् ॥
यह जगह श्रद्धा वालों के भीड़ से भरा रहता है।
यहां पर कॉलेज भी हैं। जिसमें राजकीय इंटर कॉलेज काफी प्रसिद्ध है। लोग निर्माण विभाग, वन विभाग, दिल्ली पर्यटन विभाग तथा गढ़वाल विकास नियम के विश्रामगृह में कुछ सरकारी विभागों का कार्यालय भी यहां पर स्थित है।
कर्णप्रयाग(884मी)
कर्णप्रयाग समुद्र तल से 884 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।चमोली जनपद में बद्रीनाथ मार्ग पर अलकनंदा व पिंडर नदी के संगम पर यह तीर्थ स्थान स्थित है।कहा जाता है यह जगह महादानी कर्ण के नाम पर कर्णप्रयाग पड़ा है।
यहां पर महादानी कर्ण ने सूर्य देव की आराधना कर शक्तिशाली कवच प्राप्त किया था। केदार खंड पुराण में कर्णप्रयाग के विषय में लिखित है कि-
ब्रह्मपुत्र तपः स्थानादाग्नेयाश्रितभागके। स्थानं परमरम्यं हि शिवलोकप्रदायकम्॥

यहां पर देखने के लिए और भी विभिन्न प्रकार के मंदिर है। यहां पर उमा देवी का विशाल प्राचीन मंदिर भी स्थित है। कारण मंदिर ,लोक निर्माण विभाग, वन विभाग ,बद्रीनाथ मंदिर ,गढ़वाल मंडल विकास निगम समिति के विश्रामगृह
तथा काली कमली की धर्मशाला राजकीय महा विश्वविद्यालय ,राजकीय इंटर कॉलेज राजकीय ,कन्या इंटर कॉलेज ,आईटीआई ,तहसील विकासखंड सामुदायिक, स्वास्थ्य केंद्र में राष्ट्रीय राजकीय विभागों के प्रमुख कार्यालय भी यहां देखने को मिलेंगे।
यहां से एक मोटर मार्ग द्वाराहाट, रानीखेत ,अल्मोड़ा में दूसरा बागेश्वर को जाता है।कर्णप्रयाग, जनपद चमोली का एक प्रमुख केंद्र स्थान है। यहां से एक मोटर मार्ग नंदा देवी शक्तिपीठ नौटी को भी जाता है।
यह जगह बेहद ही शानदार जगह में से एक है। आप यहां पर अपने परिवार के साथ आ सकती है। यहां की पहाड़ियों बहुत ही सुंदर है यह एक शांति प्रिय जगह है।
रुद्रप्रयाग (672 मी)
रुद्रप्रयाग समुद्र तल से 672 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह जगह ऋषिकेश से 139 किलोमीटर की दूरी बद्रीनाथ मार्ग पर अलकनंदा व मंदाकिनी नदी के संगम पर स्थित है। यहां संगम के पास रुद्रेश्वर भगवान, हनुमान जैसे देवी देवता के मंदिर भी स्थित हैं।
कहते हैं कि देव ऋषि नारद ने यहां पर ओम नमः शिवाय मंत्र से शिवजी जिन्हें रूद्र भगवान के रूप में भी जाना जाता है । उनकी आराधना की थी। यहां से उन्होंने संगीत शास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया था।
इसलिए इस जगह का नाम रुद्रप्रयाग हो गया है। पहले इसे रूद्रावर्त के नाम से जानते थे। महाभारत में इस जगह का उल्लेख मिलता है। जिसमें लिखा है-
रुद्रावर्त ततो गच्छेत् तीर्थ सेवी नराधिप ।
तत्रस्नात्वा नरो राजन स्वर्गलोकं च गच्छति ॥
रुद्रप्रयाग से केदारनाथ धाम का मुख्य मार्ग शुरू होता है।यहां पर संस्कृत महाविद्यालय ,राजकीय इंटर कॉलेज ,राजकीय कन्या इंटर कॉलेज, लोक निर्माण विभाग, गढ़वाल मंडल विकास निगम, वन विभाग ,काली कमली आदि के विश्रामगृह के अलावा जिलाधिकारी ,तहसील, जिला पंचायत तथा अनेक राजकीय विभागों के प्रमुख कार्यालय भी स्थित है।

देवप्रयाग (457 मी)
देवप्रयाग समुद्र तल से 457 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह जगह अलकनंदा में भागीरथी के संगम पर हरिद्वार से 94 किलोमीटर की दूरी पर यह तीर्थ स्थान स्थित है। यहां पर नौवीं शताब्दी का विशाल रघुनाथ मंदिर तथा अन्य मंदिर है।
मंदिर के पृष्ठ भाग में गुरु शंकराचार्य गुफा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां पर भगवान श्री राम ने रावण वध के दोष निवारण के लिए तपस्या की थी। जिससे वह पंडित तथा ब्रह्मण हत्या से मुक्ति पा सकें।
यहां पर गोमुख ग्लेशियर से प्रवाहित होकर भागीरथी नदी अलकनंदा से मिलने के बाद पतीत पावनी गंगा कहलाने लगती है। कटाव के अलावा यहां पर दो कुंड और बन गए हैं।अलकनंदा की विशिष्ट कुंड तथा भागीरथी की ब्रह्मा कुंड।
देवप्रयाग के चारों दिशाओं में चार शिवजी विराजमान है। जो क्षेत्रपाल माने जाते हैं। यह पावन नगरी दशरथांचल ,गृध्र तथा नृसिंह तीनों पर्वतों से घिरा हुआ है। देवप्रयाग सर्वोत्तम तीर्थ माना जाता है। यहां पर भक्तों गनों की काफी भीड़ रहती है।
इस जगह पर देखने के लिए राजकीय महा विश्वविद्यालय, संस्कृत महाविद्यालय, राजकीय इंटर कॉलेज ,राजकीय कन्या इंटर कॉलेज, लोक निर्माण विभाग, गढ़वाल मंडल विकास निगम, काली कमली आदि के विश्रामगृह, तहसील कार्यालय तथा अनेक राजकीय कार्यालय भी देखने को मिलेंगे।
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