गोविन्द पशु विहार राष्ट्रीय उद्यान उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित है। यह उत्तराखंड के सबसे प्रसिद्ध राष्ट्रीय उद्यानों में से एक है। यहां देखने के लिए आपको वन्य जीवन विविध वनस्पति और विभिन्न वन्य जीवनी के बारे में मिलेगा।
गोविन्द पशु विहार राष्ट्रीय उद्यान क्यों प्रसिद्ध हैं?
यह उत्तराखंड के लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण का केंद्र भी है। यहां पर बड़ी संख्या में लोग घूमने आते हैं। वन्य जीवन प्रेमियों के लिए यह आकर्षण का बहुत ही शानदार केंद्र है। जीवन अभ्यारण्य के रूप में स्थापित किया गया था।
लेकिन सन 1955 में इसे राष्ट्रीय उद्योग का दर्जा प्राप्त हो गया। गोविंद पशु विहार वन्य जीवन उत्तराखंड में एक राष्ट्रीय उद्यान में से एक है।

जिसे भारत में शुरू में 1955 में वन्य जीवन अभ्यारण के रूप में स्थापित किया गया था और बाद में से एक उद्यान में बदल दिया गया। इसका नाम प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता गोविंद बल्लभ पंत के नाम पर दिया गया है।
जो 1950 में गृहमंत्री बने और हिंदी को एक आधारित भाषा के रूप में स्थापित करने की उपाधि के लिए याद किए जाते हैं। यह पार्क 1 मार्च 1955 को स्थापित किया गया था।
भारतीय राज्य उत्तराखंड के उत्तरकाशी में स्थित है।यह पार्क गढ़वाल हिमालय की ऊंची चोटी में स्थित है। गोविंद पशु विहार राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य का कुल क्षेत्रफल 958 किलोमीटर है।भारत सरकार द्वारा शुरू करें जाने वाला यह प्रोजेक्ट इस अभ्यारण्य में प्रबंध किया जा रहा है।
इस वन्य जीवन अभयारण्य की ऊंचाई समुद्र तल से 1400 से 6323 मी अर्थात 45093 से 20745 फीट तक है। पार्क में अंदर अलग-अलग प्रकार की दूर-दूर घाटिया है। यह ट्रैकिंग के लिए एक प्रसिद्ध स्थान में से एक है।

कई प्रकार के पर्यटक उत्तराखंड के ट्रैकिंग और वन्य जीवन को देखने के लिए आते हैं। स्वतंत्रता से पहले अंग्रेजों ने इस क्षेत्र को लकड़ी की नकाशी ,सड़कों के निर्माण और वन विश्राम गृह प्रदान करने के लिए प्रबंधन किया था।
स्वतंत्रता के बाद राज्य के वन विभाग ने इस भूमिका को निभाया। सन 1988 में पार्क को सेकीरी के अंदर 20 किलोमीटर तक बढ़ा दिया गया। इसमें हर वर्ष 400 पर्यटक आए थे और 1990 में 1000 से अधिक पर्यटक भारतीयों का दौरा किया।
अभ्यारण्य में सबसे निचली ऊंचाई पर पश्चिम हिमालय चोड़ी पत्ते वाले जंगल हैं।जो पश्चिमी हिमालय उप शंकु धारी जंगलों और पश्चिम हिमालय अल्पाइन, झाड़ियां घास के मैदाने में परिवर्तित हो रहे हैं। अभ्यारण्य के निचले हिस्से में मौजूद पेड़ों में चीड़, देवदारों और अन्य पर्णपाती प्रजाति शामिल है।
लगभग 2600 मी अर्थात 8500 फीट से अधिक ऊंचाई पर सामान्य प्रजाति में नीले पाइन, सिल्वर फि़र ,यू जैसे शंकु धारी पेड़ और ओक मेंपल जैसी पर्णपाती प्रजातियां शामिल है।अखरोट ,हेजे़ल और रोडोडेंडोन।

अभ्यारण में बड़े जानवरों की लगभग 15 प्रजातियां पाई जाती हैं। साथ-साथ ही पक्षियों की भी 150 प्रजातियां यहां मौजूद हैं।यह वही स्थान है। जहां पर भारत सरकार ने स्त्रो लेपर्ड परियोजना का उद्घाटन किया था।
इस परियोजना का उद्देश्य हिम तेंदुओं की सुरक्षा के लिए विशेष संरक्षण प्रदान करना था। इस लुप्त प्राय शिकारी को शिकार करने वाले जंगली जानवरों की संख्या में कमी उनकी त्वचा और शरीर के अंगों के लिए आवेश शिकार, किसानों द्वारा अपने पशुओं की रक्षा के लिए मारे जाने में खतरा है।
अभियान में पाए जाने वाले अन्य जानवर काला भालू ,भूरा भालू, आम तेंदुए, शामिल है। कस्तूरी मृग, भरल,हिमालय तहर, सिरो,कलगीदर, साही ,यूरोपीय ऊदबिलाव ,गौरल, हिमालय क्षेत्र चूहा, विशाल उड़ने वाले गिलहरी, जंगली सूअर,सिक्किम पर्वत वोल शामिल है।
जहां पाए जाने वाले पक्षियों में कई लुफ्त प्राय प्रजातियां शामिल हैं।जैसे गोल्ड ईगल, स्टेपी ईगल, दाढ़ी वाले गिद्ध, हिमालय स्त्रोकॉक, हिमालयन मोनाल तीतर। छोटे पंछियों में उल्लू, कबूतर,मिनीवेट, वॉरब्लर,बुलबुल, तोता, कोयल, स्तन,बेटिंग ,फिंच शामिल है।
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