तुंगनाथ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में भगवान शिव का मंदिर है तुंगनाथ। जो की बेहद सुंदर और ट्रैकिंग के लिए भी बहुत ही शानदार जगह में से एक है। यहां हर मौसम श्रद्धालुओं का आना होता है। तुंगनाथ पर्वत पर स्थित तुंगनाथ मंदिर 3640 मीटर की ऊंचाई पर बना हुआ है।
तुंगनाथ मंदिर उत्तराखंड
यह अपने भाव और अद्भुत रचना के लिए काफी प्रसिद्ध है। यह मंदिर पांच केदारो में भी शामिल है। यहां पर भगवान शिव की भुजाओं की विशेष पूजा की जाती है क्योंकि इस स्थान पर भगवान शिव की भुजा मूर्ति के रूप में विद्यमान है।
तुंगनाथ मंदिर क्षेत्र के साथ ही देश-विदेश की भी आस्था का केंद्रीय है। यहां हर वर्ष सावन के महीने में हजारों भक्तजन अभिषेक करने के लिए पहुंचते हैं। कहा जाता है श्री कृष्ण की सलाह पर पाण्डव शिव से मिलने हिमालय पहुंचे लेकिन शिव महाभारत के युद्ध के चलते नाराज थे।
इसलिए उन्हें भ्रमित करने के लिए भगवान ने भैसे के झुंड में भैंसा का रूप बनाकर चले गए I वहां से निकल गए लेकिन पांडव नहीं माने और वह शिवाजी की खोज में निकल पड़े। उन्होंने भैसे बने शिवजी को पहचान लिया और उन्हें पकड़ने की कोशिश की ।
भगवान शिव धरती पर सामने लगे तभी भीम ने उनके ऊपर के हिस्से को खींच लिया।जो आज के समय में केदारनाथ के रूप में पूजा जाता है। जहां भगवान के पांचो अंग पहुंचे वह जगह पंच केदार के नाम से प्रसिद्ध है। कहते हैं कि तुंगनाथ में बाहू यानी शिव की भुजा का हिस्सा स्थापित है।
इसीलिए तुंगनाथ के नाम से जाना जाता है। यह काफी हजारों साल पुराना मंदिर। तुंगनाथ मंदिर भगवान शिव के हाथों की पूजा होती है।जो की वस्तु कला के उत्तर भारतीय शैली की प्रतिनिधित्व करती है। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर नंदी महाराज बैल की पत्थर की मूर्ति है।
तुंगनाथ मंदिर की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत काल में पांडवों के द्वारा किया गया था। पांडव ने भगवान भोलेनाथ को खुश करने के लिए इस मंदिर की स्थापना की थी।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती ने भोले बाबा से विवाह से पहले उन्हें खुश करने के लिए तुंगनाथ की धरती पर ही तपस्या की थी। एक कथा यह भी प्रचलित है कि रावण ने भगवान शिव को खुश करने के लिए इस जगह पर तपस्या की थी।
इसके अलावा भगवान राम ने रावण के वध के बाद खुद को ब्रह्मण हत्या की शराप से मुक्ति करने के लिए इस जगह पर शिव जी की तपस्या की थी। इस मंदिर का नाम तुंगनाथ है। जिसका अर्थ होता है भुजा अर्थात तुंग का मतलब होता है हाथ या भुजा जो कि भगवान शिव के हाथ को समर्पित है।
चंद्रशिला का दर्शन करना होता है जरूरी
अगर आप तुंगनाथ आ रहे हैं। तो आपको चंद्रशिला के दर्शन करना बहुत ही जरूरी है। तुंगनाथ छोटी तीन धाराओं का स्रोत है। जिसमें अक्षकामिनी नदी बहती है। यह मंदिर चोपता से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। समुद्र तल से यह जगह 12000 फीट की ऊंचाई पर चंद्रशिला मौजूद है
और यह तुंगनाथ मंदिर के डेढ़ किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित है।ऐसा कहा जाता है कि तुंगनाथ की यात्रा अगर आप कर रहे हैं तो आपको चंद्रशिला के दर्शन जरूर करनी चाहिए। तभी मंदिर के दर्शन पूरे माने जाते हैं। चंद्रशिला में गंगा मंदिर स्थित है।
तुंगनाथ की प्राकृतिक सुंदरता
14000 फुट की ऊंचाई पर बस यह क्षेत्र बहुत खूबसूरत क्षेत्र है। जो की गढ़वाल हिमालय से में स्थित है। यहां फरवरी से जनवरी के महीने में बहुत ही ज्यादा बर्फ पड़ती है। जिससे यह जगह बर्फ की चादर से ओड़ी हुए प्रतीत होता है।
जुलाई से अगस्त के महीने में यहां की सुंदरता देखते ही बनती है। इस महीने में मिलो तक फैला मखमली घास का यह मैदान काफी सुंदर लगता है।यहां पर अलग-अलग प्रकार के फूल भी खिलते हैं।
यहां पर पर्यटक आना बहुत ही पसंद करते हैं। इसे मिनी स्विट्ज़रलैंड भी कहा जाता है। सबसे विशेष बात यह है की गढ़वाल क्षेत्र में अकेला ऐसा क्षेत्र है। जहां पर बुग्यालों की दुनिया में सीधे प्रवेश किया जा सकता है।
तुंगनाथ की कहानी
मंदिर का नाम ‘तुंग’ है, जिसका मतलब हाथ और ‘नाथ’ भगवान शिव के प्रतीक के रूप में लिया गया है। कहा ये भी जाता है कि पांडवों से रूष्ठ होकर भगवान शिव बेल के रूप में धरती में समाने लगे। तब भगवान शिव का भुजा यहां पर आई थी।
इसलिए यहां पर तुंगनाथ मंदिर की स्थापना हुई। रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इसी जगह पर तपस्या की थी। इसके अलावा भगवान राम ने रावण के वध के बाद खुद को ब्रह्ममण हत्या के शाप से मुक्त करने के लिए उन्होंने इस जगह पर शिवजी की तपस्या की थी।
तुंगनाथ मंदिर की क्या मान्यता है
तुंगनाथ मंदिर को लेकर पौराणिक मान्यता है कि, इसका निर्माण पांडवों द्वारा कराया गया था। जब महाभारत युद्ध में नरसंहार से शिवजी पांडवों से रुष्ट हो गए थे। तो उन्हें प्रसन्न करने के लिए पांडवों ने इस मंदिर को बनवाया था। चंद्रशिला के दर्शन के बिना तुंगनाथ मंदिर की यात्रा अधूरी मानी जाती है।
तुंगनाथ मंदिर की विशेषता
कहां जाता है कि मंदिर काफी प्राचीन और अपनी सुंदरता के लिए काफी मशहूर हैं ।तुंगनाथ का रास्ता भी काफी मशहूर है।यहां पर आने वाले भक्तगण यहां की सुंदरता को देखकर हैरान रह जाती हैं।
12 से 14000 फुट की ऊंचाई पर यह क्षेत्र गढ़वाल के लिए बहुत ही खास जगह में से एक है और सबसे बड़ी बात यह पंच केदार का हिस्सा है।
तुंगनाथ मंदिर का निर्माण
तुरंत मंदिर का निर्माण काफी बड़े-बड़े पत्थरों से किया गया है। जिसके अंदर काले पत्थर से बना शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के अंदर प्रवेश करते समय मंदिर के द्वार पर भगवान शिव की सवारी नंदी महाराज शिवलिंग की और मुख करके बैठे हैं।
मंदिर के अंदर शिवलिंग के आसपास काल भैरव, महर्षि व्यास, मां अष्टधातु से बनी मूर्तियां स्थापित है। इसके अलावा बाकी के चार केदार और पांडवों की नकाशियां भी दीवार पर देखने को मिलती है। तुंगनाथ मंदिर की दाएं और एक छोटा सा भी मंदिर है।
जहां पर भगवान गणेश की मूर्ति है। गणेश मंदिर की दाएं और अन्य छोटे-छोटे पंच मंदिर भी हैं। एक तरह से तुंगनाथ मंदिर के आसपास कहीं छोटे-छोटे मंदिर आपको देखने को मिल जाएंगे।
मुख्य मंदिर के ऊपर एक लकड़ी का चबूतरा बना हुआ है। जो चारों ओर 16 खिड़कियों के माध्यम से खुला हुआ है। इस चबूतरे के ऊपर मंदिर के शिखर को बड़े-बड़े पत्थरों के सहायता से ढका गया है।
तुंगनाथ मंदिर का पुजारी
पहले जब आचार्य शंकराचार्य जी ने जन्म लिया था।तब उनके आदेश अनुसार बाकी चार केदार में दक्षिण भारत के पंडित मुख्य पुजारी बनते हैं। यह परंपरा आज भी चली आ रही है लेकिन तुंगनाथ मंदिर के साथ ऐसा कुछ भी नहीं है। तुंगनाथ मंदिर में पुजारी स्थाई ब्राह्मण होते हैं। जो स्थानीय गांव मुक्कूमठ गांव के होते हैं।
तुंगनाथ मंदिर कब बंद रहता है
तुंगनाथ मंदिर नवंबर से मार्च के महीने में बंद रहता है क्योंकि इस समय पर यहां भारी बर्फबारी होती है। इस जगह को मिनी स्विट्ज़रलैंड भी कहते हैं। शीतकाल में तुंगनाथ भगवान की शीतकालीन गद्दीस्थल मक्कूमठ में 6 महीने तक पूजा होती है।
तुंगनाथ मंदिर कब खुलता है।
तुंगनाथ मंदिर कुछ ही महीना के लिए खुलता है। ज्यादातर यह गर्मियों के महीने के दौरान खुलता है। जब तीर्थ यात्री मंदिर जाते हैं। वहीं अक्टूबर के अंत तक मंदिर के दरवाजे बंद हो जाते हैं। दिवाली तक खुला रहता है।

दिवाली के बाद मंदिर के मुख्य मूर्ति को वहां से लाकर मक्कूमठ मंदिर में रख दिया जाता है। जो कि यहां से 20 से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।इसके बाद मंदिर फरवरी के महीने तक बंद रहता है और मक्कूमठ में ही भगवान की पूजा अर्चना की जाती है।
तुंगनाथ मंदिर में दर्शन का समय
मंदिर में सुबह 6:00 बजे से भक्तों के लिए मंदिर खुल जाते हैं और शाम 7:00 बजे के आसपास से मंदिर के कापाट बंद किए जाते हैं।
तुंगनाथ में आसपास घूमने के लिए दर्शनीय स्थल
तुंगनाथ में घूमने जाने की सोच रहे हैं। तो इसके आसपास भी काफी स्थल है। जहां आप घूम सकते हैं।
चंद्रशिला पहाड़ी
कहा जाता है कि अगर आप तुंगनाथ मंदिर जा रहे हैं। तो आपको चंद्रशिला पहाड़ी जाना जरूरी होता है। वरना आपकी यात्रा दूरी मानी जाती है। यह तुंगनाथ मंदिर से लगभग 1 से 2 किलोमीटर के ऊपर है। जिसमें जाने में एक से डेढ़ घंटा लगता है।
कहा जाता है कि भगवान श्री राम ने रावण के वध करने के बाद ब्रह्मण हत्या से मुक्ति पाने के लिए यहां पर कुछ समय तपस्या की थी और भगवान शिव से क्षमा मांगी थी। यही कारण है कि यह छोटा मंदिर होने के बावजूद भी बहुत ही ज्यादा जरूरी मंदिरों में से एक है।
देवरिया ताल
मक्कूमठ में चोपता के बीच सारी नामक एक गांव आएगा। उसे गांव में दो से तीन किलोमीटर की चढ़ाई पर देवरिया ताल आता है। जो की बेहद ही सुंदर झील है।यह चारों तरफ जंगल से घिरा हुआ है यह बहुत आकर्षक ताल में से एक है।
चोपता गांव
चोपता गांव घूमने लायक जगह है। यहां पर आप प्राकृतिक का आनंद ले सकते हैं तथा आसपास ट्रैक कर सकते हैं
उखीमठ
यहां पर भगवान शिव माता पार्वती की समर्पित कई मंदिर देखने को मिलते हैं।
कस्तूरी मृग अभ्यारण
यहां पर आपको कसूरी मृग मुख्य रूप से देखने को मिलेंगे। इसी लिए यहा का नाम कस्तूरी मृग अभ्यारण पड़ा है। यहां पर दुर्लभ वन प्रजातियां भी पाई जाती हैं।

तुंगनाथ मंदिर जाते समय इस बातों का रखें ध्यान
- यह जगह बर्फीली तथा ठंडी जगह है इसलिए आपको गर्म कपड़े हमेशा अपने साथ लेकर चलें।
- कम कपड़े ले लेकिन गरम कपड़े ले। ज्यादा कपड़े लाकर भरना बढ़ाएं क्योंकि यहां काफी पैदल चलना पड़ता है।
- ट्रैकिंग करने के लिए ट्रैकिंग वाले जुते, एक छड़ी अपने साथ रखें। यह पहाड़ों में चढ़ने के लिए आसानी होती है।
- होटल इत्यादि पहले से ही बुकिंग करके आए।
- मंदिर के अंदर फोटोग्राफी करना मना है इसलिए इस बात का ध्यान रखें और कैमरे लेकर मंदिर के अंदर फोटो ना खींचे।
- पहाड़ों को देवभूमि कहा जाता है। आप यहां घूमने आए परंतु यहां पर गंदगी ,कचरा ना करें इसे अपने घर की तरह साफ सफाई का ध्यान रखें।
- बारिश के मौसम में यहां आने से बाचे।
- ऊंचाई में होने के कारण मोबाइल सिग्नल में कमी आती है।
तुंगनाथ मंदिर कैसे पहुंचे
वैसे तो तुंगनाथ पहुंचने के कई रास्ते हैं। लेकिन जो तीन बड़े शहरों से होकर जाना होता है। वह शहर हरिद्वार ,ऋषिकेश और देहरादून है।आप कहीं से भी आए। तो आप इन तीनों शहरों से होकर ही यहां आना होता है।
यहां से आगे की यात्रा के लिए आपको यहां से बस टैक्स या निजी वाहन आसानी से मिल जाएंगे। ऋषिकेश से दूरी 200 किलोमीटर हरिद्वार से दूरी 225 किलोमीटर और देहरादून से दूरी 246 किलोमीटर है ।
यहां से सीधी बस या टैक्सी मिलना मुश्किल होता है।इसलिए पहले आपके गोपेश्वर या चोपता उतारना होगा और फिर वहां से तुंगनाथ के लिए जाना पड़ता है।
गोपेश्वर से दूरी 41 किलोमीटर से 29 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
चोपता से तुंगनाथ जाने की दूरी 3 से 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
हवाई यात्रा
अगर आप हवाई जहाज से आना जा रहे हैं तो तुंगनाथ मंदिर आने के लिए सबसे करीबी नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून है।यहां से बस या टैक्सी करके आप चोपता आप पहुंच जाएंगे। चोपता से बस या टैक्स करके आप तुंगनाथ मंदिर पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग
यदि आप रेलगाड़ी से आना चाह रहे हैं।तो रेलगाड़ी से तुंगनाथ मंदिर आ सकते हैं। इसके लिए सबसे निजी नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। यहां से आप टैक्स या बस आकर के आराम से चोपता पहुंच सकते हैं।चोपता से बस या टैक्स करके आप तुंगनाथ मंदिर पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग
अगर आप सड़क मार्ग के जरिए तुंगनाथ आना जा रहे हैं। तो आप किसी भी शहर में क्यों ना हो दिल्ली ,चंडीगढ़, जयपुर इत्यादि से ऋषिकेश ,देहरादून या हरिद्वार सीधी बस मिल जाती है।
यहीं से आपको आगे के लिए गाड़ियां बस मिल जाएगी जो आपको चोपता छोड़ देंगे।चोपता से बस या टैक्स करके आप तुंगनाथ मंदिर पहुंच सकते हैं।
Similar Article
- एक हथिया नौला चंपावत (Ek Hathiya Naula)
- श्री रीठा साहिब गुरुद्वारा (Reetha Sahib Gurudwara)
- बालेश्वर महादेव मंदिर (Baleshwar Temple Champawat)
- आदि बद्री (Adi Badri)
- वृद्ध बद्री (Vridh Badri Temple)
- भविष्य बद्री (Bhavishya Badri Temple)
- हनुमान गढ़ी मंदिर (Hanuman Garhi Mandir)
- सती कुंड क्यों प्रसिद्ध है? (Sati Kund Kankhal)
- पंच बद्री (Panch Badri Temples)
- पंच प्रयाग (Panch Prayag of Uttarakhand)
- मध्यमेश्वर मंदिर (Madhyamaheshwar Mahadev)
- कल्पेश्वर महादेव मंदिर (Kalpeshwar Mahadev Temple)
- रुद्रनाथ मंदिर (Rudranath Temple)
- तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Temple Uttarakhand)
- पंच केदार (Panch Kedar)













