पंच बद्री का क्षेत्र केदार खंड के अंदर आता है पौराणिक हिंदू तथा गढ़वाल हिमालय का भूभाग केदार खंड के नाम से जाना जाता था। केदार खंड में सर्वत्र शिव जी का ही आधिपत्य माना गया है। कहते हैं कि जब से विष्णु भगवान का इस क्षेत्र से परार्पण हुआ। तब से इस केदार खंड के अंतर्गत बद्रिकाश्रम में वैष्णव खंड भी पावन तीर्थ बन गया।
पंच बद्री कौन-कौन से हैं
केदार खंड अर्थात गढ़वाल के अंतर्गत शिव और विष्णु का पूजा समान रूप से किया जाता है। बद्रिकाश्रम में पंचबदरी समूह में विशाल बदरी या भव्य बदरी (बद्रीनाथ), आदिबदरी, वृद्धबदरी ,योगध्यानबदरी तथा भविष्यबदरी है इन पांचो पवित्र तीर्थ का यात्रा के पश्चात ही बद्री दर्शन पूर्ण माना जाता है।
बद्रीनाथ (3140 मी)
बद्रीनाथ समुद्र तल से 3140 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।नगाधिराज हिमालय की गोद में तथा अनेक हिमानी शिखर एवं नारायण पर्वतों के मध्य भू बैकुंठ बद्रीनाथ पुरी में भगवान बद्री विशाल का भव्य मंदिर है। यहां पर मंदिर के पाश्र्व में युगों से प्रवाहित पतित वेगवती हिमानी अलकनंदा है।
जो मानव की धार्मिक चेतना और उसके आध्यात्मिक स्रोत की प्रेरणादायक रही है। बद्रीनाथ मंदिर देश के प्राचीन सांस्कृतिक मंदिरों में से एक है। जो भावनात्मक एकता तथा अटूट विश्वास श्रद्धा सम्मान का महत्वपूर्ण प्रतीक माना जाता है।
दक्षिण भारत के नंबूदरीपद ब्राह्मण मुख्य पुजारी रावल ही बद्रीनाथ मंदिर की पूजा श्रृंगार के अधिकारी होते हैं। भगवान नारायण जिनकी नाभि कमल से प्रजापति ब्राह्मण की उत्पत्ति हुई का निवास होने के कारण ही पुराने में सर्वश्रेष्ठ तप भूमि बद्रिकाश्रम और चार धामों में श्रेष्ठ धाम बदरीनाथ कहा गया है।
इसके बारे में कहा जाता है-
बहूनि संति तीर्थानि, दिवि भूमि रसासु च । बदरी सदृशं तीर्थ, न भूतो न भविष्यति ॥
बद्रीनाथ पुरी ऋषिकेश से लगभग 300 किलोमीटर दूरी पर स्थित है मंदिर में कुछ नीचे अलकनंदा के प्रस्रव में गर्मधारा तप्त कुंड है।समीप ही शरारती ब्रह्म कपाल,पहलाद धारा, कर्मधारी, नारद कुंड ,ऋषि गंगा, शेष नेत्र तथा चरण पादुका आदि।तीर्थ भी यहां पर स्थित है।
बद्रीनाथ से 3 किलोमीटर की दूरी पर सीमांत जनजाति ग्राम मारा माता मूर्ति का मंदिर भी स्थित है। व्यास गुफा भी पल तथा केशव प्रयाग भी यहा स्थित है। विष्णु भगवान नर नारायण आदि देवताओं की मूर्ति भी बद्रीनाथ में स्थित है।
मंदिर परिक्रमा में शंकराचार्य लक्ष्मी जी का मंदिर भी है। लक्ष्मी जी की मंदिर की यहां बहुत ही ज्यादा मानता है। कहा जाता है जब यहां के धाम 6 महीने के लिए बंद होते हैं। तो लक्ष्मी मां के वस्त्र को बदलने का कार्य यहां के पंडित करते हैं।
जो कि स्त्री का रूप धारण करके ही माता के श्रिंगार बदलते हैं। यहां पर और भी देवी देवताओं की मूर्ति देखने को मिलती है। तप्त कुंड के पास छोटा शिवालय भी स्थित है।

आदि बद्री (920 मी)
आदि बद्री समुद्र तल से 920 मीटर की ऊंचाई में स्थित है। यह जगह जनपद चमोली में करणप्रयाग से 21 किलोमीटर की दूरी रानीखेत चौखुटिया मोटर मार्ग पर स्थित है।आदि बद्री का स्थानीय नाम नौठा है।
यहां पर छठी तथा 12वीं शताब्दी से 14 मंदिरों का पुंज है। हाथ जोड़ गरुड़ ,देवता गौरी, देवी लक्ष्मी मां,नारायण ,गणेश भगवान, महर्षि मंदीनी आदि देवी देवताओं की सुंदर कलाकृति मूर्तियां यहां पर स्थित है।
यह मंदिर प्राचीन मंदिरों के द्वार- पाटों पर गंगा-यमुना, नृत्य करते गंधर्व, कीर्ति मुखा व्यास आदि के सुंदर चित्र भी देखने को मिलते हैं। आदि बद्री के प्रमुख देवता विष्णु जी को श्यामवर्ण शीला की वरद मुद्रा में दाएं हाथ वाली पदम रहित मूर्ति के सौंदर्य की और दर्शकों का ज्ञान विशेष रूप से आकर्षित करता है।
आदि बद्री मंदिर पुंज में धर्म और कल का सुंदर समावेश देखने को मिलता है। जिसमें सत्यम शिवम सुंदरम पर आधारित भारतीय जीवन दर्शन की झलक देखने को मिलती है। आदि बद्री में भक्तों को सर्वप्रथम भगवान विष्णु के दर्शन मिल जाते थे।

वृद्ध बदरी (1380 मी)
बद्रीनाथ धाम समुद्र तल से 1380 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। बद्रीनाथ मार्ग पर हेलंग से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पर विष्णु भगवान ने मार्ग अवरुद्ध होने पर वृद्ध संन्यासियों को दर्शन दिए थे।
यह स्थान वृद्धि बद्री के नाम से प्रसिद्ध है।श्री बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति द्वारा इस मंदिर में नित्य पूजा अर्चना की व्यवस्था है।
योगध्यानबदरी (1680 मी)
योगध्यानबद्री समुद्र तल से 1680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह जगह चमोली जनपद में जोशीमठ से 20 किलोमीटर की दूरी पर पांडुकेश्वर की पुरानी बस्ती में स्थित है। इसके सामने ऊंचा शिखर पर पांडव सेल दृश्यमान है।
कहते हैं यहां पर राजा पांडव अपने दोनों पत्नी कुंती एवं माधुरी के साथ निवास करते थे। यहां पर पांडवों का जन्म हुआ था। इसे पांडवों की जन्म भूमि के नाम से भी जाना जाता है। राजा पांडु ने अपने श्राप से मुक्त करने के लिए यहां तपस्या की थी।
इसलिए इस स्थान का नाम पांडुकेश्वर रखा गया। यहीं पर भगवान बद्री नारायण अपने योग साधना में लीन थे। यहां के मंदिरों को ताम्रपत्र भारतीय इतिहास की अमूल्य निधि माने जाते है।
यहां पर प्रतिवर्ष शीतल काल में बद्रीनाथ मंदिर के पट बंद होने पर बद्रीनाथ जी के चतुर्मुखी उत्सव मूर्ति यहां पर समारोह लाई जाती है। ग्रीष्म काल में बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खुलने पर यह मूर्ति पुनः बद्रीनाथ मंदिर में स्थापित कर दी जाती है।
भविष्य बद्री (2744 मी)
भविष्य बद्री समुद्र तल से 2744 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।ट यह जगह जोशीमठ नीति घाटी मोटर मार्ग पर से 18 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए मोटर मार्ग से 3 किलोमीटर की चढ़ाई करनी पड़ती है।
जो की पैदल यात्रा है । यहां भगवान विष्णु के मंदिर में भविष्य बद्री को आदि आकृतिक युक्त मूर्ति की पूजा की जाती है। कहा जाता है की घोर कलयुग में आने पर बद्रीनाथ के मार्ग पर जब नर नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे।
तब लोग बद्रीनाथ जी की यात्रा आगमन हो जाएगी और भविष्य में भविष्य बद्री में बद्रीनाथ जी का आधा आकृति की यह मूर्ति पूर्ण होकर भगवान भविष्य बद्री में प्रकट हो जाएगी और कलयुग के लोग इसी को बद्रीनाथ मानेंगे। बद्रीनाथ जी की पूजा भविष्य बद्री में होने लगेगी पुराणों में भी इसका उल्लेख मिलता है जो कि इस प्रकार है-
यावद् विष्णोः कला तिष्ठेद ज्योतिः संज्ञे निजालये। गम्यं स्याद् बदरी क्षेत्रं, अगम्यं च ततः परम ।।
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