हिसालु फल उत्तराखंड मे पाए जाने वाले जंगली फलों में से एक फल है। जो कि रस से भरा हुआ होता है। यह देखने में बहुत ही आकर्षक होता है। उतना ही इसमें औषधि गुण भी भरे होते हैं।
हिसालु फल
हिसालु फल अप्रैल से मई के महीने में होता है। यह फल जमीन में रूखी सूखी कटीली झाड़ियों मे उगने वाला फल है। हिसालु का फल 100 से 2000 मीटर की ऊंचाई पर मिलता है।
इसको हिमालयन रसबरी के नाम से भी जाना जाता है। इसका बॉटनिकल नाम रूबस एलिप्टिकस है। हिसालु फल दो तरह के होते हैं। काले हिसालू और पीले हिसालू काले रंग के हिसाब काफी कम मात्रा में पाए जाते हैं।
हालांकि आपको पहाड़ी क्षेत्रों में पीले रंग के हिसालु ज्यादातर देखने को मिलेंगे। यह बहुत ही कोमल होते हैं। हल्के हाथ से दबाने में इनका रस निकल जाता है और यह फल तोड़ने के दो-तीन घंटे के बाद खराब हो जाता है
यह बेहद ही स्वादिष्ट होते है। खट्टा मीठा होता है तथा इसमें औषधि गुण भी पाए जाते हैं। यह फल हर एक उत्तराखंड निवासी के बचपन की यादों को समेटे हुए दिव्य फलों में से एक है।

कुमाऊं क्षेत्र में इसे हिसालु के नाम से जाना जाता है और गढ़वाल क्षेत्र में इसे हिसर के नाम से जाना जाता है। वैसे तो हिसालु खाने में खट्टे मीठे होते हैं लेकिन जिस हिसालु का रंग लाल होता है। वह खाने में बहुत ही मीठा और जल्दी मुंह में घुल जाता है। उत्तराखंड मे यह बहुत ही लाभदायक फलों में से एक है। कटीली झाड़ियों में उगने के कारण झाड़ियों में बहुत ही ज्यादा खतरनाक कांटे होते हैं। उत्तराखंड कुमाऊं के प्रसिद्ध कवि गुमानी पंत जी नहीं शालू के बारे में एक कविता में वर्णन किया है कि:-
हिसालु की जात बड़ी रिसालू।
जा जाॅ जाछे उधेङ खाछे।।
यो बात को कवे गतो नि मानन।
दुघात गोरुक लात सैणी पडनछ।।
अर्थात हिसालु की वनस्पति बड़ी ही गुस्सा होती है। यह जहां तहां खरोच लगा देती है। मगर कोई भी इस बात का बुरा नहीं मानता क्योंकि दूध देने वाली गाय की लात भी सहनी पड़ती है।

हिसालु भारत में लगभग सभी हिमालय राज्य में पाया जाता है। भारत के अलावा यह नेपाल, पाकिस्तान ,पोलैंड आदि पहाड़ी देशों में भी पाया जाता है। विश्व भर में हिसालु की लगभग 1500 प्रजातियां पाई जाती हैं। हिसालु बहुत ही दिव्य औषधि के रूप में भी काम करती है।
हिसालु फल के फायदे
- हिसालु में अनेक पोषक तत्व पाए जाते हैं। जैसे कि इसमें विटामिन सी, मैगनीज, जिंक, आयरन ,फाइबर कैलशियम, मैग्निशियम, कार्बोहाइड्रेट आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। यह अत्यधिक मीठे होने के बावजूद भी शुगर की मात्रा एकदम बहुत ही कम पाई जाती है। यह अलग-अलग प्रकार की बीमारियों के लिए औषधि का काम करता है।
- हिसालु के फलों का रस खांसी, गले के दर्द के लिए बेहद ही लाभदायक होता है।
- हिसालु के रस का बुखार में भी लाभ करता है।
- हिसालु के रस को पेट दर्द ठीक करने के लिए भी सेवन किया जाता है।
- हिसालु मूत्र संबंधी बीमारियों के लिए तथा योनि स्त्राव जैसी बीमारियों के लिए भी लाभदायक माना जाता है।
- इसके तने की छाल का तिब्बती चिकित्सा में कामोत्तेजक दबाव के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
- हिसालु के फलों का नियमित रूप से सेवन करने से किडनी की बीमारियों में लाभ मिलता है।
- हिसालू के फलों को नियमित रूप से सेवन करने से नाड़ी दुर्बलता भी दूर की जा सकती है।
- हिसालु पलों को बिच्छू घास की जड़ की छाल के साथ कूटकर काढ़ा बनाकर पीने से बुखार का रामबाण इलाज होता है।
हिसालु एक पहाड़ी जंगली फल होने के कारण इसमें दिव्य गुण पाए जाते हैं। लेकिन अगर इसे बहुत ही ज्यादा मात्रा में खा लिया जाए तो पेट खराब होने की समस्या हो सकती है।

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