मध्यमेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह पांच केदारो में से एक केदार है।यह मंदिर समुद्र तल से 3497 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह पांच केदारो में से चौथा केदार है। अन्य चार केदार केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, कल्पेश्वर है।
मध्यमेश्वर मंदिर उत्तराखंड:
मध्यमेश्वर मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय की मनसुना गांव में स्थित है। यहां पर भगवान शिव के बैल रूपी नाभि की पूजा की जाती है। जो की महाभारत काल में पांडवों के द्वारा बनाई गई है।
मध्यमेश्वर मंदिर को रहस्यमय भी माना जाता है। इसका कारण यह है कि मंद्ममहेश्वर मंदिर के दाएं और बर्फ के बड़े-बड़े हिमालय से ढके हुए हैं और बाएं तरफ हरे-भरे घास के मैदान और जंगल है।
यहां पर गांव के घर हजारों साल पुराने मध्यमेश्वर मंदिर और अद्भुत दृश्य के लिए तथा यहां की मंदिर की वस्तु कला के लिए उत्तर भारतीय शैली है।

मंदिर में संगमरमर से बनी सरस्वती की मूर्ति भी स्थापित है। यहां के पुजारी दक्षिण भारत से ही हैं ।जो की लिंग्ययंत जाति के जागमा कहलाते हैं तथा जो कर्नाटक राज्य में मैसूर में रहने वाले होते हैं।
मध्यमेश्वर मंदिर में दर्शन करने का सबसे अच्छा
मंदसौर मंदिर में दर्शन करने के लिए सबसे अच्छा समय मई ,जून, जुलाई ,अगस्त ,सितंबर, अक्टूबर और नवंबर है। अर्थात मई से नवंबर के महीने में आप कभी भी दर्शन करने के लिए आए।यह समय सबसे अच्छा होता है।
मध्यमेश्वर मंदिर की सुंदरता
चौखंबा शिखर की तलहटी में स्थित मंदमहेश्वर धाम अपनी खूबसूरती तथा प्राकृतिक की सुंदरता सिमेटे हुए हैं। यहां दूर-दूर तक पहले चौखंबा, नीलकंठ में केदारनाथ की हिमालय पर्वत श्रृंखला बहुत ही सुंदर दिखाई पड़ती है।
मध्यमेश्वर यात्रा मार्ग में खूबसूरत झरने फूल हर बुग्यालों से सजी घटिया ,वे बादलों से घिरा आसमान काफी सुंदर लगता है। जो कि पर्यटको को का मन मोह लेता है। मंदमहेश्वर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर बुढ़ा मध्यमेश्वर या वृद्ध मध्यमेश्वर स्थित है।

जहां प्राकृतिक प्रेमियों के लिए बहुत ही अच्छा नजारा देखने को मिलता है।इस जमीन में पहले पर्वत मौसम के साथ-साथ रंग बिखेरती हैं। यह प्राकृतिक की सुंदरता को दिखाने के लिए बहुत ही ज्यादा खूबसूरत उदाहरण है।
मध्यमेश्वर मंदिर से जुड़े मान्यता
मंदिर की मान्यता है कि जो भी व्यक्ति मध्यमेश्वर में भक्ति या बिना भक्ति महत्व को पढ़ता या सुनता है। तो उसे शिव के परमधाम की स्थान की प्राप्ति होती है।
इसके अलावा यहां पर पिंडदान करने से पिता की सात पीढ़ी ,सात पीढ़ियां माता के तथा सात पीढ़ियां श्र्वसुर के वंशजों का उद्धार हो जाता है।
इसके अलावा पौराणिक काल के अनुसार यहां की मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती की खूबसूरती के कारण भगवान शिव माता पार्वती की मधुचंद्र रात्रि यही मनाई गई थी।

यहां मौजूद जल के बारे में कहा जाता है। जो भी इस जो में अपनी मनोकामना बोल दे उसे वह प्राप्त कर लेता है।उसे मुश्किलों से प्राप्ति मिल जाती है।
मध्यमेश्वर मंदिर पहुंचने का रास्ता
हवाई जहाज द्वारा
अगर आप हवाई जहाज के द्वारा मध्यमेश्वर मंदिर आने की सोच रहे हैं। तो आपको देहरादून हवाई अड्डा उतरना होगा। यहां से आप बस या केब कर के गौरीकुंड आ सकते हैं।
ट्रेन के रास्ते
ट्रेन के रास्ते से भी आप गौरीकुंड आ सकते हैं। यहां आने के लिए आपके नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश में उतरना होगा।यहां से आप कार ,गाड़ी या बस करके गौरीकुंड आ सकते हैं।
सड़क के द्वारा
उत्तराखंड परिवहन सड़क मार्ग काफी अच्छे से जुड़े हैं। हरिद्वार, ऋषिकेश, श्रीनगर अगर आप दिल्ली, लखनऊ, देहरादून किसी भी स्थान पर है। तो आप डायरेक्ट बस से गौरीकुंड आ सकते हैं।
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