सती कुंड क्यों प्रसिद्ध है? (Sati Kund Kankhal)

हरिद्वार से 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कनखल काफी प्रसिद्ध और पुरानी जगह में से एक है। इस जगह का प्राचीन पौराणिक महत्व काफी महत्व रखता है। यह स्थान मां सती के नाम के लिए काफी प्रसिद्ध है। यहां पर सती कुंड है। यह जगह सतीकुंड के नाम से भी जानी जाती है।

सती कुंड कनखल हरिद्वार

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि यहां के राजा दक्ष की बेटी सती की भगवान शिव से विवाह हुआ था। जिसके पश्चात दक्ष ने अपने यहां काफी बड़ा यज्ञ रखा था। उसमें सभी देवी देवताओं को बुलाया गया था। लेकिन महादेव को आमंत्रित नहीं किया गया था नाराज हुई।

सती ने भगवान शिव से अपने पिता के यहां यज्ञ पर जाने के लिए कहा तो शिव जी ने बोला जहां बुलावा ना हो वहां नहीं जाना चाहिए। पर शिव जी की बात ना मन कर सती जी अपने पिता के यहां यज्ञ पर चली गई।

सती कुंड
सती कुंड

वहां जाकर उन्होंने सिर्फ अपने पिता से शिवजी के बारे में बुरा भला सुना तथा अपने पति का अपमान होते देख सती को बहुत ही बुरा लगा। उन्होंने सोचा अगर मैं अपने पति के यहां जाऊं तो भी गलत है क्योंकि उनकी बातों का अनादर करके मैं अपने पिता के यहां आई हूं।

मेरे पिता ने भी मेरा अनादर किया है तथा अपने पति का सभी देवी देवताओं के आगे अपमान सुनकर सती ने यज्ञ कुंड में छलांग लगा दी। यह कुंड आज भी यहां पर स्थित है। आज भी आप पर एक विशाल मूर्ति है।जहां शिवजी जलती हुई सती जी को उठाकर ले जा रहे हैं। यह वही सती है।

जिनके भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से 51 टुकड़े कर दिए थे क्योंकि भगवान शिव सती मां के जलते शरीर को लेकर पूरे ब्रह्मांड में घूमने लगे थे। जगह-जगह त्राहिमाम त्राहिमाम हो गया था।

यही कारण था कि भगवान विष्णु को माता सती के 51 टुकड़े करने पड़े।जहां-जहां यह टुकड़े गिरे।वहां शक्तिपीठ बन गए। यहां पर सती जी के नहाने का भी एक कुंड है।यहां काफी मंदिर स्थित है तथा यहां पर बाजार भी मंदिर के प्रांगण में स्थित है।

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