Badrinath Temple History in Hindi बद्रीनाथ अथवा बद्रीनारायण मंदिर भारतीय राज्य उत्तराखंड के चमोली जनपद में स्थित है। जहां पर आपको पास में अलकनंदा नदी भी देखने को मिलेगी। यह मंदिर बहुत ही पुराने मंदिरों में से एक है। यह मंदिर हिंदू देवता विष्णु भगवान को समर्पित है। इस स्थान के बारे में अलग-अलग तरह की कहानियां में वर्णित सर्वाधिक पवित्र स्थान माना जाता है।
Badrinath Temple History
यह चार धामों में से एक मंदिर है। जिसका निर्माण 7वी शताब्दी में होने के प्रमाण मिलते हैं।मंदिर के ही नाम पर आसपास की जगह का नाम भी बद्रीनाथ के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर ऊंचे हिमालय के बीच स्थित है।
बद्रीनाथ मंदिर हिंदुओं का मंदिर है। पर यहां पर किसी भी धर्म के लोग आ सकते हैं तथा यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। यहां विष्णु भगवान की एक रूप बद्रीनारायण की पूजा होती है। Gangotri Temple देवभूमि उत्तराखंड के चार धाम यात्रा का महत्वपूर्ण धाम
यहां पर लंबी शालिग्राम से निर्मित यह मूर्ति के बारे में मान्यता है कि इसे आदि शंकराचार्य ने सातवीं शताब्दी में समीपस्थ नारायण कुंड से निकालकर यहां पर स्थापित किया था।
इस मूर्ति को हिंदुओं द्वारा विष्णु के 8 स्वयं व्यक्त क्षेत्रो में से एक माना जाता है। यह मंदिर उत्तर भारत में स्थित है। यहां के पुजारी रावल होते हैं।जो कि दक्षिण भारत अर्थात केरल राज्य के नम्बूदरी सम्प्रदाय के ब्राह्मण होते हैं। Yamunotri Temple History(यमुनोत्री धाम का इतिहास):देवभूमि उत्तराखंड के चार धाम में से एक
बद्रीनाथ मंदिर को उत्तर प्रदेश राज्य सरकार अधिनियम द्वारा 30/1948 मे मंदिर अधिनियम 16/1969 के तहत शामिल किया गया था। जिसके बाद में श्री बद्रीनाथ तथा श्री केदारनाथ मंदिर अधिनियम के नाम से भी जाना जाने लगा। वर्तमान में उत्तराखंड सरकार द्वारा एक सत्रह सदस्यीय समिति दोनों बद्रीनाथ एवं केदारनाथ मंदिर को प्रकाशित करती है। इस मंदिर के बारे में विष्णु पुराण, स्कंद पुराण तथा महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख मिलता है। Kedarnath Mandir महादेव का प्रिय धाम
बद्रीनाथ नगर जहां पर यह मंदिर स्थित है। हिंदुओं के पवित्र चार धाम यात्रा वाले मंदिरों में से एक है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित 108 दिव्य देशों में से एक है।अन्य संकल्पना अनुसार इस मंदिर को बद्री विशाल के नाम से भी जाना जाता है और विष्णु भगवान को ही समर्पित है। यहीं पर निकट चार अन्य मंदिर योगध्यान बद्री, भविष्य बद्री, वृद्ध बद्री और आदि बद्री के साथ जोड़कर पूरे समूह को पंच बद्री के रूप में जाना जाता है।
बद्रीनाथ मंदिर की अपने आप में अलग अलग चमत्कार है और रहस्यमई चीजें यहां देखने को मिलेंगी। ऐसा कहा जाता है कि बद्रीनाथ की महत्ता आलोकिकता का ही प्रमाण है। यहां 1 दिन की तपस्या का फल अन्य स्थानों में 1000 वर्ष की तपस्या के फल के समान है।इसीलिए सहस्त्रकवचधारी नाम के राक्षस का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने यहां नर और नारायण के रूप में तपस्या की थी। Dhari Devi Mandir चार धाम यात्रा के बाद जाना ना भूलेंI
माना जाता है कि सहस्त्रनाम राक्षस के एक कवच भेदन वही कर सकता था जिसने 1000 वर्ष तपस्या किया हो।भगवान ने यहां नारायण रूप में तपस्या की और 1 दिन नारायण तप करते और नर युद्ध। एक दिन नर तप करते और नारायण युद्ध। बद्रीनाथ मंदिर प्राचीन मंदिरों में से एक है तथा इस क्षेत्र को अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है। हिमालय में स्थित बद्रीनाथ क्षेत्र में अलग-अलग नामों से जाना जाता था।
स्कंद पुराण की बात करें तो स्कंद पुराण में बद्री क्षेत्र को “मुक्तिप्रदा”के नाम से जाना जाता था। जिससे स्पष्ट हो जाता है कि सतयुग में यही नाम था। त्रेता युग में भगवान विष्णु के इस क्षेत्र को ” योग सिद्ध “और द्वापर युग में भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन के कारण इसे ” मणिभद्र आश्रम” या” विशाला तीर्थ “के नाम से जाना जाता था। कलयुग में इसे बद्रिकाश्रम अथवा बद्रीनाथ के नाम से जाना जाता है।
Badrinath Temple Location
यहां पर पाए जाने वाले बेर के पेड़ों के कारण यहां का नाम बद्रीनाथ पड़ा था।यहां पर बद्री के घने वन पाए जाते थे हालांकि अभी निशानी नहीं मिली है।यह किताबों से जाना गया है। बद्रीनाथ नाम की उन्नति के पीछे एक कथा और बताई जाती है। जो कि बहुत ही ज्यादा प्रचलित है। श्री मुनि नारद एक बार भगवान विष्णु के दर्शन के लिए क्षीरसागर में पहुंचे तो उन्होंने वहां माता लक्ष्मी को भगवान विष्णु के पैर दबाते हुए देखा। नारद ने भगवान से इसके बारे में पूछा तो अपराध बोध से ग्रस्त भगवान विष्णु तपस्या के लिए वहां से हिमालय को चल दिए।
भगवान विष्णु योग ध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन हो गए।तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा भगवान विष्णु में पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी इस दशा को देखकर माता लक्ष्मी को बहुत ही दया आई तथा वह हृदय द्रवित हो उठी। उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु की रक्षा के लिए बद्री के वृक्ष का रूप ले लिया और अपने ऊपर से सब कष्ट सहने लगी। माता लक्ष्मी भगवान विष्णु को धूप वर्षा और हिम से बचाने की कठोर तपस्या में जुड़ गई। जब भगवान विष्णु जी का कठोर तपस्या पूरी हुई तो भगवान विष्णु जी ने लक्ष्मी जी हिम से ढकी हुई थी।
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उन्होंने मां लक्ष्मी को देखकर कहा हे देवी लक्ष्मी तुमने मेरे बराबर तप किया है। तो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे साथ ही पूजा जाएगा और तुमने मेरी रक्षा के लिए रखा है बद्री के वृक्ष का रूप लिया है ।तो आज से मुझे बद्री के नाथ अर्थात बद्रीनाथ के नाम से जाना जाएगा। पुरानी कथाओं की मान्यता के अनुसार बद्रीनाथ के आसपास का क्षेत्र पूरा शिवभूमि अर्थात केदारखंड के रूप में माना जाता है। गंगा नदी धरती पर आई थी तब यह 12 धाराओं में बट गई। इस स्थान से होकर बहने वाली धारा को अलकनंदा के नाम से जाना जाता है।
मान्यता अनुसार विष्णु भगवान जब आप ने तपस्या हेतु उचित स्थान खोज रहे थे। तब उन्होंने अलकनंदा के समीप यह स्थान बहुत ही ज्यादा पसंद आया। नीलकंठ पर्वत के समीप भगवान विष्णु ने बालक का रूप अवतार लिया और तपस्या करने लगे माता पार्वती का ह्रदय विष्णु भगवान को बालक रूप में देखकर द्रवित हो उठा। उन्होंने उनके सामने उपस्थित होकर उन्हें मनाने का प्रयास किया। बालक ने उनसे ध्यान योग करते हुए। वह स्थान मांग लिया। यही पवित्र स्थान वर्तमान में बद्रीनाथ के नाम से प्रसिद्ध है।
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