अटरिया मंदिर लगभग 200 ईस्वी के आसपास में बना हुआ मंदिर है। जो उत्तराखंड के रुद्रपुर में स्थित प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। इस मंदिर के प्रसिद्ध होने के कारण, निसंतान को संतान देने वाली माता , मुराद पूरी करने वाली देवी तथा काफी पुराने मंदिरों में से एक होने का कारण है। यही कारण है कि अटरिया देवी के प्रति श्रद्धालुओं के मन में आज भी श्रद्धा जीवित है।
अटरिया मंदिर का इतिहास
अटरिया मंदिर लगभग 200 ईस्वी के आसपास में बना हुआ मंदिर है। जो आज भी लोगों के लिए श्रद्धा का केंद्र है। यहां पर काफी दूर-दूर से माता के दर्शन करने के लिए भक्तगण आते हैं। उत्तराखंड के ही नहीं बल्कि देश भर के अलग-अलग राज्यों से भी श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए यहां आते हैं। नवरात्रों के दिनों में यहां काफी भीड़ रहती है।

यह मंदिर काफी पुराने मंदिरों में से एक है। कहा जाता है कि आक्रमणकारियों ने इस मंदिर को तोड़ दिया था और मूर्ति को पास के कुएं में डाल दी थी। 1588 ई में अकबर का शासन काल था। जिसके बाद तराई का क्षेत्र राजा रूद्रचंद के कब्जे में आया। राजा रूद्रचंद्र शिकार खेलने जंगल की तरफ गए थे।
उनके रथ का पहिया दलदल में फंस गया था।पहिया दलदल से नहीं निकलने पर राजा ने उसी स्थान पर रात को विश्राम करने को सोचा। कहां जाता है कि मां अटरिया ने रात के समय राजा के सपने में आकर दर्शन दिए और कुएं में मूर्ति होने की बात बताई। राजा ने अपने सैनिकों को आज्ञा दी और कुएं में छानबीन किया गया।
जिसके बाद वहां से माता की मूर्ति निकली। जिसके बाद उसी जगह पर राजा रूद्र चंद्र ने 1600 ईस्वी में फिर से मूर्ति की स्थापना किया और मंदिर का निर्माण कराया।
इसके बाद से लगातार मंदिर में दर्शन और पूजन का कार्य कर्म जारी है। लेकिन 2020 में कोरोनावायरस के दौरान ऐसा पहली बार हुआ की मंदिर के कपाट बंद करने पड़े और मंदिर परिसर में ऐतिहासिक मेले का आयोजन भी नहीं किया गया था।

क्यों है माता का मंदिर मशहूर
यहां पर भक्त अपनी मुराद लेकर माता के दरबार पर पहुंचते हैं। वैसे तो मां सब की मुराद पूरी करती है लेकिन खास तौर में निसंतान जिनमें कोई औलाद नहीं होती, मुंक, बधिर और दिव्यांग लोगों की आस्था माता के प्रतीक ज्यादा है। जिसके लिए देश भर में कोने-कोने से लोग मां के मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचते हैं तथा मां उन पर अपनी कृपा बरसती है।
निसंतान दंपति का हो जाता है संतान
वैसे तो मां अपने बच्चों को कभी भी दुखी नहीं करती लेकिन यह मंदिर निसंतान दंपतियों के लिए एक वरदान रूपी मंदिर से कम नहीं है। माना जाता है कि जिस भी दंपति का संतान न हो रहा हो, वह अगर माता से संतान प्राप्ति के लिए यहां आए।

तो उसकी यह मनोकामना जरुर पूर्ण होती है। यहां मनोकामना पूरी करने के लिए डोरी वाले जाते हैं।जिससे माता रानी उनकी मनोकामना जल्द पूरी करती है। लोगों का मान्यता है कि कोई भी निसंतान अगर मां के दरबार पर आता है तो वह कभी भी खाली झोली नहीं जाता है।
चैत्र नवरात्र में लगता है मेला
अटरिया मंदिर में हर वर्ष चैत्र नवरात्रि के महीने में माता रानी के मंदिर के पास मेले आयोजन किया जाता है। यह मेला काफी पुराने मेले में से एक है।बहुत प्राचीन होने के कारण मंदिर में इन दोनों सबसे ज्यादा भीड़ लगती है।
मां का डोला मंदिर पहुंचने के साथ ही मेला प्रारंभ होता है और मां की विदाई के बाद मेला संपन्न हो जाता है। इस तरह करीब 3 सप्ताह मेले का आयोजन किया जाता है।
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