उत्तरकाशी स्कंद पुराण में सौम्या काशी के नाम से दिखाया गया है। सामान्य उत्तरकाशी तथा स्थानीय निवासियों में बाराहाट के नाम से काफी प्राचीन नाम से विख्यात था। यह नगर पावन नगरी जिसे काशी में अभिभूत पावन परंपरा से निर्वहित किया गया है।
उत्तरकाशी उत्तराखंड का पवित्र स्थान
उत्तर का वाराणसी भी इस क्षेत्र को कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने किरात रूप धारण करके यही पर अर्जुन से युद्ध किया था। केदार खंड में उत्तरकाशी की महिमा इस प्रकार वर्णित है:-
यत्र भागीरथी पुण्या गङ्गा चोतरवाहिनी । सौम्यकाशीति विख्याता गिरौ वै वारयणावते ॥
तत्र स्नात्वा नरौ द्याति ब्रह्मलोकं सनातनम। सप्त जन्मार्जिते पापैर्मुच्यते नात्र संशयः ॥
हिमालय गजेटियर के अनुसार ब्रह्मपुर राज्य की राजधानी बाराहाट थी। स्कंदखंड के अनुसार यह पांडव संस्कृति का अंग रहा है।यहां पांडवों को मारने के लिए दुर्योधन ने लाक्षागृह बनाया था।
इसी ग्रंथ में वर्णित है कि उत्तरकाशी प्राणियों को मुक्ति प्रदान करने वाली परम पुनीत नगरी है। वे लोग धन्य है जो कलयुग में उत्तरकाशी में निवास करते हैं।
इयमुत्तरकाशी हि प्राणिनां मुक्तिदायिनी। धन्या लोके महाभाग कलैयेषामिह स्थितिः ॥
उत्तरकाशी में दक्षिण पूर्व में गंगा प्रभाव भी है। उत्तर में अस्सी गंगा तथा पश्चिम में वरुण नदी से सीमा बंद्ध है। यहां पर विश्वेश्वर मंदिर है। सन 1875 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार टिहरी नरेश सुदर्शन शाह ने कराया था।
इसके अलावा यहां पर परशुराम मंदिर ,अन्नपूर्णा मंदिर, दत्तात्रेय जड़, भरत शक्ति, स्तंभ मंदिर ,कुट्टी देवी, भगवती दुर्गा तथा लक्ष्मेश्वर मंदिर यहां के प्रमुख मंदिरों में से एक हैं। विश्वनाथ मंदिर के प्रांगण में एक ऐसा प्राचीन त्रिशूल भी है।
जिसकी ऊंचाई 6.25 मीटर है तथा इसका भाग का मोटापा 0.9 मीटर है। इस त्रिशूल का प्राचीन लिपि में तीन से चार पंक्तियां लिखी है। उत्तरकाशी छोटा सा नगर था।परंतु 1947 के पश्चात व्यावसायिक दृष्टि में यह नगर का विकास होने लगा।
सन 1916 में टिहरी गढ़वाल जिले की उत्तरकाशी तहसील को जनपद बनाए जाने के बाद उत्तरकाशी मुख्यालय के रूप में प्रशासनिक कार्यकालों का हिस्सा है।
यहां पर मनेरी भाली जल विद्युत परियोजना, नेहरू पर्वत रोहण संस्थान होने के कारण शैक्षिक तथा नागरिक सेवाओं का विस्तार हो गया है।यहां पर भटवानी लंका तथा भैरव घाटी हेतु मोटर मार्ग सीधे गंगोत्री जाती है।
उत्तरकाशी पर प्राकृतिक आपदाओं का प्रकोप हमेशा से बना रहा है। 1803 में भूकंप,1978 में गंगा का मार्ग अवरुद्ध होने से बनी झील टूटने ,1980 में बादल का फटना, 20 अक्टूबर 1991 में विनाश का भूकंप तथा भू-स्क्लन जैसी गतिविधियां होती रहती हैं।
उत्तरकाशी का इतिहास
उत्तरकाशी का प्राचीन नाम बालाघाट है।विश्वनाथ मंदिर के कारण इसका नाम उत्तरकाशी कहा जाता है।वैदिक काल में काशी को शराप मिला था कि कलयुग में वाराणसी का काशी लोगो के संताप से अपवित्र हो जाएगा।
इस हिसाब से व्याकुल होकर देवताओं और ऋषि मुनि में भगवान शिव से उपासना का स्थान पूछा था। उन्होंने बताया कि काशी सहित सभी तीर्थ के साथ में हिमालय पर वास करेंगे। इसी कारण वर्णनापर्वत पर अस्सी और भागीरथी संगम पर देवताओं द्वारा उत्तरकाशी बसाई गई।
वर्तमान में उत्तरकाशी में सभी मंदिर एक घाट स्थित है। जो वाराणसी में स्थित है। इसमें विश्वनाथ मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, भैरव मंदिर ,समिति का घाट ,एक केदार घाट, आदि शामिल है। किधर खंड में वर्णित कथा अनुसार उत्तरकाशी में विश्वनाथ मंदिर भगवान परशुराम ने बनवाया था।
उत्तरकाशी के प्राचीन समय में विश्वनाथ की नगरी के नाम कहा जाता है। पुराणों में उत्तरकाशी को सौम्या काशी के नाम से बोला गया है। महारानी दर्शन शाह की पत्नी कांति ने 1857 में इस मंदिर की मरम्मत करवाई थी।
मान्यता है कि कलयुग में उत्तरकाशी एकमात्र ऐसा तीर्थ स्थान रहेगा। जहां पर भगवान भोलेनाथ इस नगर के बीच-बीच काशी विश्वनाथ के रूप में विराजमान रहेंगे। उत्तरकाशी शहर मां भागीरथी के तट पर स्थित भव्य मंदिर है।
यह आस्था का बड़ा केंद्रीय है। मंदिर उत्तरकाशी में बस स्टैंड से 300 मीटर की दूरी पर स्थित है। यह प्रतिवर्ष बिस्सु मेला, ठर पूजा उत्सव, कण्डट मेला, समेश्वर मेला, बाराहाट का मेला लगता है।
उत्तरकाशी की पौराणिक कथा
पुरानी कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि राजा सागर के 6000 पुत्र और भागीरथ गंगा को पृथ्वी में लाए थे। जिस स्थान पर मां गंगा उतरी थी। वह स्थान गोमुख और गंगोत्री पर्वत के नाम से जाना जाता है।गोमुख को गंगा नदी का उद्गम स्थान भी कहा जाता है।
यह उत्तरकाशी में स्थित है। वैज्ञानिक दृष्टि में गोमुख वह स्थान है। जहां गंगोत्री ग्लेशियर का निर्माण होता है और गोमुख में गंगा नदी भागीरथी के नाम से निकलती है। कहा जाता है कि गोमुख बनावट राज्य राजस्थान के आबू पर्वत के प्रमुख जैसी है।
उत्तरकाशी में प्रमुख दर्रे
उत्तरकाशी में दो या दो से अधिक पहाड़ियों के बीच की जगह या पहाड़ों के बीच आने जाने वाले पतले रास्ते को दर्रा कहा जाता है। यह प्रकृति की वह मार्ग है। जिनसे होकर पहाड़ों को पार किया जाता है।
अधिकांश घटिया दर्रा के पास ही स्थित होती है।जब दर्रा बीच की गहराई बढ़ जाती है। तब वह घटिया कहलाती हैं अर्थात दो या दो से अधिक पहाड़ियों के बीच का गहरा भाग घाटी होता है।
आमतौर पर गहराई अधिक होने के कारण इसमें नदिया आ जाती है। जैसे उत्तरकाशी में नेलांग दर्रा नेलांग घाटी,बारसू दर्रा वे बारसू घाटी, स्थित है। नीलम घाटी को उत्तरकाशी में पहाड़ का रेगिस्तान भी कहा जाता है।
- तेलांग दर्रा, थांगला दर्रा, मुलिंगला दर्रा और सागचौकला दर्रा उत्तरकाशी और तिब्बत के बीच में स्थित हैं। इसमें नेलांग को छोड़कर शेष सभी उत्तरकाशी से तिब्बत के पर्वतों के बीच 3 अलग-अलग पतले रास्ते का निर्माण करते हैं। इसमें थांगला दर्रा 6079 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। थांगला दर्रा के पास से ही जाडगंगा नदी निकलती है। हरकी दून व किन्नौर घाटी के बीच बारसू दर्रा व्यापार के लिए प्रसिद्ध था ।
- उत्तरकाशी और हिमाचल प्रदेश के बीच श्रृंगकंठ दर्रा है। इस दर्रे की ऊंचाई लगभग 1500 है।
- उत्तरकाशी व चमोली के बीच कालिंदी दर्रा है।
- बाली पास दर्रा उत्तरकाशी के यमुनोत्री में स्थित है। इसके अतिरिक्त आर्डन कार्ल दर्श उत्तरकाशी से भिलंगना घाटी के मार्ग के लिए जाता है।
- मांझी बन फूलों की घाटी, बासपा घाटी (हर्षिल) व भैरव घाटी (भटवाड़ी) उत्तरकाशी में स्थित है।
उत्तरकाशी पर्वत श्रेणी
उत्तरकाशी में काफी प्रसिद्ध पर्वत श्रेणियां है। यहां चमोली जिले के पास सर्वाधिक पर्वत श्रेणियां स्थित है। चमोली में उत्तरकाशी जनपद के बीच स्थित केदारनाथ उत्तरकाशी जनपद का सर्वे अधिक ऊंचाई पर स्थित पर्वत है।
उत्तरकाशी जिले का दूसरा ऊंचा पर्वत थलैया सागर है। यह पर्वत गंगोत्री ग्लेशियर के दक्षिण में स्थित है ।जो उत्तराखंड का चौथा में भारत का 13वां सबसे ऊंचा पर्वत है। मेरु पर्वत जिसकी ऊंचाई 6660 मीटर है।
यह पर्वत तलैया शिखर वे शिवलिंग शिखर के बीच में स्थित है। इसका निकट ही सुमेरु पर्वत है। इसके अतिरिक्त उत्तरकाशी के प्रमुख पर्वत:-
1.भागीरथी पर्वत
इस पर्वत में राजा भागीरथी ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए एक पैर पर खड़े होकर वर्षों तपस्या की थी। इसीलिए इसी को भागीरथी पर्वत कहा जाता है। इसकी ऊंचाई 6856 मीटर है।
श्रीकंठ पर्वत इस पर्वत की ऊंचाई 6728 मीटर है।
2.गंगोत्री पर्वत
गंगोत्री पर्वत की ऊंचाई 6672 मीटर है।यही में गंगोत्री ग्लेशियर स्थित है। जो राज्य का सबसे बड़ा हिम्मद है। इसकी लंबाई 30 किलोमीटर तथा चौड़ाई 2 किलोमीटर है। इसमें कीर्ति ग्लेशियर वे चतुरंगी ग्लेशियर भी है। जो की गंगोत्री पर्वत पर स्थित है।
3.यमुनोत्री पर्वत
यमुनोत्री पर्वत में सूर्यकुंड व सप्त ऋषि कुंड स्थित है ।सूर्य कुंड को गर्म कुंड या गर्म पानी का कुंड कहा जाता है। सप्त ऋषि कुंड को पुराणों में मलिंग सरोवर भी कहा जाता है। जौंधर,सियार,चारण,बमक आदि गणेश यमुनोत्री में ही स्थित है।
4.जैलंग पर्वत
इस पर्वत की ऊंचाई 5781 मीटर है।
5.बंदर पूछ पर्वत
बंदर पूछ पर्वत की ऊंचाई 6320 मीटर है।बंदर पूछ पर्वत उत्तरकाशी जिले के यमुनोत्री में स्थित है।यह पर्वत 12 किलोमीटर के दायरे में बदरपुर कालेश्वर स्थित है।कलिंग पर्वत इसी पर्वत श्रेणी का एक हिस्सा है।
6.स्वर्गारोहिणी पर्वत
इस पर्वत की ऊंचाई 6252 मीटर है। यह पेपर चमोली उत्तरकाशी में स्थित है।
उत्तरकाशी की प्रमुख नदियां
भागीरथी नदी
गंगा को उत्तराखंड में गंगा के नाम से देवप्रयाग के बाद जाना जाता है। जबकि गंगोत्री में देवप्रयाग तक इस भागीरथी के नाम से जाना जाता है। भागीरथी नदी का उदय स्थल गंगोत्री गोमुख है।सर्वप्रथम भागीरथी ने रूद्र गंगा गंगोत्री के पास में मिली है।
गोमुख में गंगोत्री के बीच भागीरथी में जाकर गंगा मिलती है। गंगोत्री के निकट भैरव घाटी है। जहां चार गंगा अथवा नदी भागीरथी से मिलती है। गंगोरी नाम स्थान पर भागीरथी नदी में अस्सी गंगा मिलती है। जहां बड़ौदा पर्वत पर अस्सी और भागीरथी संगम पर देवताओं द्वारा उत्तरकाशी बनाया गया था।
देवप्रयाग में भागीरथी को ‘सास’ में अलकनंदा को ‘बहू ‘का संगम माना जाता है।बाद गंगा से आगे बढ़ती है। गोरखमुखी में देवप्रयाग में तक भागीरथी की लंबाई 205 किलोमीटर है
तथा देवप्रयाग से हरिद्वार तक गंगा की लंबाई 96 किलोमीटर है। भारत में गंगा नदी के कुल लंबाई 2525 किलोमीटर है। भागीरथी नदी में भिलंगना नदी का संगम पर टिहरी बांध बना हुआ है।
यमुना नदी
यमुना नदी हिम्मत के यमुनोत्री कांठा नामक स्थान से निकलती है। इसे कालिंदी नदी भी कहा जाता है। पुराणो में यमुना को सूर्य पुत्री ,यम की बहन, कृष्ण की पटरानी बताया गया है। यमुना नदी की लंबाई उत्तराखंड राज्य में 136 किलोमीटर है।
जबकि इलाहाबाद तक इसकी लंबाई 1384 किलोमीटर है। यमुना की प्रमुख सहायक नदी ठोस नदी है। जो कोसी के पास यमुना में मिल जाती है।
देहरादून के थानेपुर में यमुना नदी राज्य से बाहर हो जाती है। इसके अतिरिक्त यमुना की सहायक नदी ऋषि गंगा, हनुमान गंगा ,गढ़वाली गाड कमलगाड आदि हैं।
टोस नदी
टोस नदी उत्तर काशी के बंदरपुर पर्वत की स्वर्ग रोहिणी हिम्मद से निकलने वाली सुपिन नदी और हिमाचल प्रदेश से निकलने वाली रुपिन नदी से मिलकर बनती है।
ठोस नदी उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की बॉर्डर निर्धारित करती है।यह नदी सहायक नदी खूनी गाड और मौना गाड है।148 किलोमीटर बहाने के बाद कोसी के आसपास यमुना में मिल जाती है।
उत्तरकाशी की प्रमुख झीलें
उत्तरकाशी में डोडी ताल सबसे ज्यादा प्रसिद्ध ताल है श।डोडी ताल छह कोने वाला ताल है। जो बहुत ही सुंदर और मछलियों के लिए प्रसिद्ध है। जोकि गंगा डोली ताल के पास से निकलती है।
डोडी ताल का नाम हिमालय ब्राउन टाउन प्रजाति की मछलियों के नाम पर रखा गया है। इस ताल के पास काणाताल है।फाचकंडी, बयांताल उत्तरकाशी जिले में गर्म पानी का ताल है। इसके अलावा यहां पर नचिकेता ताल ,केदार ताल, सरताल ,खेड़ा ताल मंगलाछु ताल आदि हैं।
मंगलाछु ताल खास विशेषता यह है कि यहां ताली बजाने से ताल में बुलबुल निकलते हैं। साथ ही यहां पर मंदाकिनी झरना उत्तरकाशी के सबसे सुंदर झारनो में से एक है तथा खराड़ी झरना गंगनानी में स्थित है।
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