Dehradun: देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी

उत्तराखंड की राजधानी Dehradun बहुत ही सुंदर और बड़ी नगरी है।यह सिंधु तट से 682 मीटर की ऊंचाई पर उत्तर में मध्य हिमालय दक्षिण में शिवालिंग पहाड़ियों पूर्व में गंगा नदी तथा पश्चिम में यमुना के जलागमन क्षेत्र से घिरा हुआ है। यह लगभग 300 से ज्यादा वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।

Dehradun Uttarakhand

यह भारत के प्राचीन नगरों में से एक है। साथ ही घूमने के लिए यह बहुत ही शानदार जगह में से एक है। यह पर्वतों की रानी मसूरी का प्रवेश द्वार भी कहलाता है। देहरादून के नाम के विषय में विद्वानों का एकमात्र के अनुसार द्वापर युग में शहर से 8 किलोमीटर उत्तर पश्चिम की और द्रोणाचार्य ने एक स्थान पर तपस्या की थी‌।

जिसे द्रौणाश्रम कहते हैं। यह स्थान आजकल टपकेश्वर के नाम से लोकप्रिय है। दूसरी पौराणिक कथाओं के अनुसार सिक्खो के उदासी संप्रदाय के गुरु श्रीरामराय ने तत्कालीन नरेश से यह जगह जागीर के रूप में प्राप्त की थी।

गढ़वाल नरेश फतेह शाह के गुरु रामराय से प्रभावित होकर उन्हें सात गांव ,जो खुड़बुड़ा नामक गांव के अंतर्गत थे।1699 में गुरु राम राय ने यही खुड़बुड़ा में अपना डेरा डाला था। दून शब्द’ दूण’ से बना है। जो स्वयं ‘दौणि’शब्द का विकृत रूप है। दौणि का अर्थ है दो पहाड़ियों के मध्य में घाटी।

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डेरा( देहरा) तथा दूण(दून) शब्दों से मिलकर नगर डेरादून अर्थात देहरादून कहलाने लगा। होली के त्यौहार में पांचवें दिन गुरु रामराय के दून प्रवास की स्मृति में यहां गुरु राम राय गुरुद्वारा के पास प्रतिवर्ष सुप्रसिद्ध झंडा मिला लगता है।

यह केंद्र सरकार के सर्वाधिक महत्वपूर्ण सैनिक तथा सैनिक प्रतिष्ठानों की स्थापना की गई थी।यह नगर उत्तर भारत का प्रमुख शिक्षा केंद्र भी बन गया है।

1767 में भारतीय सर्वेक्षण विभाग का क्षेत्रीय मुख्यालय करणपुर में खोला गया था। बाद में 1942 में प्रधान कार्यालय की स्थापना हाथीबड़कला क्षेत्र में कई गई। यहां पर एशिया की सबसे बड़े वन अनुसंधान संस्थान(F.R.I)तथा इंडियन मिलिट्री अकादमी (I.M.A.)की स्थापना सन 1932 में हुई थी।

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यहां पर थल सेवा के अधिकारियों की प्रशिक्षण देने वाला यह एकेडमी इंग्लैंड के सैंडहट्स तथा संयुक्त राज्य अमेरिका की वेस्ट प्वाइंट अकादमी के समक्ष विषय के सर्वोत्तम अकादमी में गिनी जाती है। यहां पर एक स्कूल भी बहुत प्रसिद्ध है।

जिसे दून स्कूल के नाम से जाना जाता है।यह सुप्रसिद्ध पब्लिक स्कूल है।अनेक प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों के अतिरिक्त यहां हिमवंती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्व विद्यालय का कैंप कार्यालय भी है‌।

यहां पर आयुध निर्माणी तेल, प्राकृतिक गैस निगम(O.N.G.C),भारतीय पेट्रोलियम संस्थान मोहकमपुर(I.I.P) ,भारतीय भुगभिर्क संस्थान, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया, बॉटनिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया, केंद्रीय मृदा एव जल संरक्षण शोध ,एवं  प्रशिक्षण संस्थान, डिफेंस इलेक्ट्रॉनिक्स एप्लीकेशंस लैबोरेट्री(D.E.A.L),इंडियन फोटो इंटरप्रिटेशन इंस्टीट्यूट, इंस्ट्रूमेंट रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट(I.R.D.E) ,राष्ट्रीय दृष्टिबाधितार्थ संस्थान(N.I.V.H) ,

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राष्ट्रीय इंडियन मिलिट्री कॉलेज ,वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ हिमालयन जियोलॉजी, वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ रिमोट सेंसिंग, जूलॉजिकल सर्वेक्षण संस्थान आदि जैसे महत्वपूर्ण संस्थाएं इसी नगर में स्थित है। यह पर्यटकों के लिए बहुत ही शानदार जगह में से एक है। जहां घूम सकते हैं।यहां पर घूमने के लिए भी मंदिर भी है। जो काफी प्रसिद्ध है इन मंदिरों में पहरी मंदिर आता है।

Dehradun Tourist Places

टपकेश्वर महादेव

यह मंदिर नगर से लगभग 5 किलोमीटर दूरी में है। गढ़ी कैंट क्षेत्र में एक छोटी पहाड़ी नदी के तट पर स्थित है। मंदिर की गुफा में स्थापित शिवलिंग पर चट्टानों की प्राकृतिक रूप से जल अभिषेक होता है। जो की बहुत ही शानदार दृश्य होता है ।यहां शिव भगवान की काफी मान्यता प्राप्त मंदिर है।

मालसी मृग विहार

यह देहरादून से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मसूरी डायवर्जन मार्ग पर शिवलिंग श्रेणियां के प्रदेश में इस सुंदर जन्तु उद्यान की स्थापना की गई है। यहां पर देखने के लिए मृग और अलग-अलग प्रकार के पक्षियों की अनेक प्रजाति मिलती है।

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सहस्त्रधारा

देहरादून से 14 किलोमीटर की दूरी पर यह स्थान स्थित है। बाल्डी नदी और मनोरम से घिरा यह स्थान बहुत ही शानदार है। यहां पर मिश्रित जल एक जल किरण केंद्र के रूप में पर्यटकों के लिए प्रमुख मनोरंजन का स्थान है। यहां बैठकों की काफी भीड़ लगती है। आप यहां पर पानी के साथ अलग-अलग प्रकार की खेल खेल सकते हैं।

चंद्रवाणी

यह जगह देहरादून -दिल्ली मार्ग पर गौतम कुंड या चंद्रवाणी के नाम से प्रसिद्ध है। यह स्थान महर्षि गौतम की तपस्या करी हुई स्थान है।शिवालिगं पहाड़ियों पर स्थित इस कुंड में पवित्र स्थान का पौराणिक महत्व है।

सांई मंदिर

देहरादून से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर राजपुर रोड पर सांई दरबार स्थित है। यहां पर ऐसा ही बाबा का दरबार लगता है। जो कि अपनी संस्कृति तथा आध्यात्मिकता के कारण देश-विदेश में काफी प्रसिद्ध है। यहां देश-विदेश से पर्यटकों की भीड़ लगती है।

तिब्बतियन मंदिर

यह मंदिर बौद्ध धर्म को के लिए है। वैसे तो यहां पर कोई भी जा सकता है लेकिन यह बौद्ध धर्म का मंदिर है। यहां सांई दरबार के पास है। यह अपने शानदार वास्तु शिल्प शैली एक तिब्बती पूजा प्रतिष्ठा के लिए काफी प्रसिद्ध है। यहां पर भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।

घुच्चूपानी

यह देहरादून में एक पिकनिक स्टार बनाने की जगह है। इस जगह को रॉबर्ट्स गुफा भी कहते है।यह घंटाघर से 8 किलोमीटर दूर अनारवाला गांव के पास पैदल मार्ग में है।

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लच्छीवाला

यह जगह देहरादून से लगभग 20 किलोमीटर दूर है। यहां पर कल कल नदी बहती है। यह एक प्रसिद्ध पिकनिक स्पॉट है तथा यहां पर प्रकृति की सौंदर्य को देख सकते हैं।

चार दिशाओं में चार सिद्ध

यह जगह आचार्य द्रौण की कर्मस्थली देहरादून चार सिद्धू की तपस्थली जगह है। देहरादून की चार दिशाओं में बनी चार सिद्धों की समाधि (मंदिर) के लिए लोगों की अलग भावनाएं तथा अपार श्रद्धा है। इन चारों  मंदिरों में रविवार की पूजा का विशेष महत्व है।

कहा जाता है कि स्वामी दत्तात्रेय के 84 से सिद्ध शिष्य में से 4 दून घाटी में बस गए थे। जिनका नाम था 1.लक्ष्मण सिद्ध, 2.माणक सिद्ध, 3.कालूसिद्ध तथा 4.मांडू सिद्ध , भक्तों का कहना है कि जो भी इन मंदिरों में जाकर अपनी मनोकामना बोलता है। उनकी मनोकामना जरुर पूर्ण होती है।

लक्ष्मण सिद्ध

बाबा लक्ष्मण सिद्ध का प्राचीन मंदिर देहरादून -ऋषिकेश मार्ग से 2 किलोमीटर देहरादून शहर से लगभग 11 किलोमीटर दूर जंगलों में स्थित है। यहां बाबा की समाधि है। जो मंदिर के रूप में बनाई गई है।

यहां हर रविवार को ज्यादा संख्या में श्रद्धालु पूजा करने के लिए पहुंचते हैं। यहां पर हर साल के अप्रैल महीने के अंतर रविवार को लक्ष्मण सिद्ध में विशेष मेला लगता है।यहां बाबा सबकी मनोकामना पूर्ण करते हैं।

माणक सिद्ध

बाबा महाराज सिद्ध का मंदिर शिमला बायपास मार्ग पर भूड्डी गांव के पास स्थित है।यहां बहुत ही ज्यादा संख्या में भगत गढ़ आते हैं तथा बाबा की पूजा करते हैं। यहां पर हर रविवार भक्तों का मेला लगता है।

यहां बाबा को गुड़ की भेली ,बताशे ,दूध चढ़ाया जाता है। बाबा सब की मुराद पूरी करते हैं।भक्त अपनी मुराद लेकर बाबा के दर पर आते हैं।

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कालूसिद्ध

जय समाधि देहरादून ऋषिकेश मार्ग पर भनियावाला से 4 किलोमीटर दूर में स्थित है।यहां की मान्यता है कि बाबा के आराधना से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।अर्थात किसी को पुत्र की छह हो तो वह बाबा के यहां आकर पुत्र की प्राप्ति कर सकता है।

यह मंदिर खुला आसमान के नीचे बना हुआ है‌। इस पर छत बनाने का प्रयास हर बार असफल हो जाता है।लोगों का मानना है कि बाबा को खुले आसमान के नीचे रहना ही पसंद है। रविवार की पूजा का बहुत महत्व है।

मांडूसिद्ध

यह बाबा का समाधि अर्थात मंदिर प्रेम नगर के पास नंद की चौकी के निकट में स्थित है। जहां भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है। भक्तों का ऐसा मानना भी है कि दून के चारों सिद्धू के दर्शन एक ही दिन में करने से मनोकामना पूर्ण नहीं होती है। लोग अलग-अलग दिन में इन मंदिर में सर झुकाने जाते हैं।

देहरादून में अलग-अलग प्रकार के लोग रहते हैं तथा यहां पर हिंदी, गढ़वाली, पंजाबी, नेपाली भाषा लोगों की प्रधानता है। देश के विभिन्न भागों से यह नगर रेल सेवा तथा 25 किलोमीटर दूर जौलीग्रांट हवाई अड्डे से नियमित वायु सेवा से जुड़ा हुआ है।

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