गंगोलीहाट भारत के उत्तराखंड राज्य में पिथौरागढ़ जिले में स्थित एक नगर है। जहां पर हाट कालिका मंदिर नामक शक्तिपीठ के लिए प्रसिद्ध है। 51 शक्ति पीठ में से एक शक्तिपीठ हाट कालिका है। जहां पर मां सती की जीभ गिरी थी।
गंगोलीहाट का इतिहास
यह जगह हाट कालिका के नाम से भी प्रसिद्ध है। गंगोलीहाट में इस शक्तिपीठ की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा की गई। हाट कालिका देवी कुमाऊं रेजिमेंट की आराध्य देवी के रूप में पूरी जाती है। यहां पर भारत के सैनिक किसी भी लड़ाई में जाने से पहले मां हाट कालिका का आशीर्वाद लेकर ही जाते हैं।
हाट कालिका को जवानों की रक्षक भी माना जाता है। यह जगह सरयू गंगा तथा रामगंगा नदी के बीच में स्थित होने के कारण इस क्षेत्र को पहले गंगावली कहा जाता था। धीरे-धीरे इसका नाम बदलकर गंगोली हो गया। 13वीं शताब्दी से पहले इस क्षेत्र में कत्यूरी राजवंश का शासक था।

13वीं शताब्दी के बाद यहां मनकोटी राजाओं का शासन रहा। जिनकी राजधानी मनकोट में थी। गंगोलीहाट के जाहृवी नौले से प्राप्त एक शिलालेख पर मनकोटी राजाओं के नाम लिखे हुए मिले हैं। 16वीं शताब्दी में कुमाऊं के राजा बालू कल्याण चंद्र ने मनकोट पर आक्रमण कर गांगुली क्षेत्र पर अधिकार जमा लिया था।
19वीं शताब्दी में गांगुली को अल्मोड़ा जनपद का परगना बनाया गया। गंगोलीहाट नगर में ही परगना मुख्यालय स्थापित किए गए। 1960 में पिथौरागढ़ जनपद के गठन के बाद गंगोलीहाट तहसील का भी गठन किया गया। जिसका मुख्यालय गंगोलीहाट नगर में रखा गया।
गंगोलीहाट नगर की स्थापना ७ जुलाई २०१२ को पिथौरागढ़ जनपद के ११ राजस्व ग्रामों को मिलाकर किया, जिनमें हाट, कूंउप्रेती, खेतीगड़ा, पुनौली, नौढुंगा, चुडियागोर, चौडियार, लाली, खतेड़ा, हनेरा व रावलगांव शामिल हैं।

गंगोलीहाट गुफाएं
गंगोलीहाट को गुफाओं की घाटी के रूप में भी जाना जाता है। गंगोलीहाट क्षेत्र की गुफाओं का स्कंद पुराण में भी उल्लेख मिलता है। इसका स्कंद पुराण के मानस खंड में गंगावाली क्षेत्र में अलग-अलग कालखंड में गुफाओं के प्रकाश आने का उल्लेख मिलता है। यह गुफाएं काफी पुरानी है। आज भी यहां पर गुफाएं की खोज होती रहती है।
अब तक यहां पर भुवनेश्वर गुफा, कोटेश्वर गुफा, भूलेश्वर गुफा, महेश्वर गुफा,लटकेश्वर गुफा, मुक्तेश्वर गुफा,सप्तेश्वर गुफा, डाणेश्वर गुफा,भऋगतउंग गुफा और हाल ही में मिली एक और गुफा जो की सबसे बड़ी गुफा है।आज तक भी यहां पर नए-नए गुफाएं देखने को मिलती हैं। जिनके बारे में अध्ययन किया जा रहा है।
गंगोलीहाट में मंदिर
हाट कालिका
हाटकालिका 51 शक्ति पीठ में से एक शक्तिपीठ है। जहां पर मां की जीभ गिरी थी। हाट कालिका मंदिर उत्तराखंड रेजीमेंट की ईस्ट देवी के रूप में जानी जाती हैं। मां जवानों की रणभूमि में रक्षा करती है।

आज भी उत्तराखंड रेजीमेंट के द्वारा चढ़ाया गया घंटा माता के मंदिर में रखा हुआ है। किसी भी जंग में जाने से पहले उत्तराखंड रेजीमेंट के फौजी मां का आशीर्वाद लेकर ही वहां जाते हैं। यहां पर काली मां साक्षात विराजमान है।
यहां माता के डोले भी निकालते हैं। किसी को भी तंत्र-मंत्र, किसी भी प्रकार के कष्ट हो तो माता रानी के उनके दुखों को दूर करती है तथा यहां मनोकामना पूर्ण भी करने वाली देवी मानी जाती है। हाट कालिका गेट, हाट कालिका के मंदिर में ही है। जो कि बहुत खूबसूरत गेटो में से एक है।
पाताल भुवनेश्वर गुफा
यह गुफा बेहद खूबसूरत गुफाओं में से एक है।यह गुफा भगवान शिव को समर्पित है। यहां पर देखने के लिए प्राकृतिक से बनी चीजे मिलेंगे। यहां पर चारों धाम भी प्राकृतिक रूप से उभरे हुए हैं।
पाताल भुवनेश्वर की खोज गुरु शंकराचार्य जी ने की थी तथा यहां पर मंदिर के अंदर अग्नि को दबाया गया है। माना जाता है कि पताल भुवनेश्वर में आना या चारों धामों की यात्रा करना बराबर होता है।

यहां पर अमृत भी देखने को मिलता है तथा यहां पर इस प्रकार का पानी मिलता है जिसे पीने से इंसान की मृत्यु भी हो सकती है लेकिन अगर वही पानी बीमार व्यक्ति के सिर पर छिड़क दिया जाए। तो वह बीमार व्यक्ति ठीक हो जाता है।
कामाख्या मंदिर
यह मंदिर कोटगाड़ी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर न्यायदेवी के नाम से प्रसिद्ध है। यहां देवी भक्तों को न्याय दिलाता है।मंदिर बेहद ही खूबसूरत है। यहां माता रानी सब की मनोकामना पूर्ण करती हैं। इस मंदिर के दर्शन करने के बाद पास में ही भरारी देवता का मंदिर है। जिसका दर्शन करना अनिवार्य होता है।
कामाख्या मंदिर दृश्य
कामाख्या मंदिर का दृश्य बहुत खूबसूरत दृश्य में से एक है।चारों तरफ पहाड़ियों से ढका यह मंदिर काफी खूबसूरत लगता है।
मोस्त्माणु मंदिर
भगवान मोस्टा को समर्पित है।इन देवता को स्थाई लोग बारिश और पानी के देवता के रूप में पूजा जाता है।
गंगोलीहाट बहुत खूबसूरत जगह में से एक है यहां पर उत्तराखंड के बेहतरीन मंदिर हैंI यहां का मौसम हमेशा अच्छा रहता है केवल बरसात को छोड़कर किसी भी मौसम में यहां पर आ सकते हैं बरसात में इसलिए नहीं आ सकते क्योंकि इस समय पहाड़ों में खतरा बना रहता हैI
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