GauriKund उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित हिंदुओं का बहुत ही पूजनीय धार्मिक स्थलों में से एक है।इस कुंड का संबंध माता पार्वती जो कि भगवान शिव की अर्धांगिनी है। उनसे संबंध रखता है। माता पार्वती का एक नाम मां गौरी भी है। केदारनाथ आने वाले भक्तों के लिए मोटर मार्ग का यह आखिरी पड़ाव गौरीकुंड है।
GauriKund to Kedarnath
यही से भक्तगण Kedarnath में बसुकी ताल के लिए ट्रैक शुरू करते हैं। GauriKund Kedarnath Trek पर आने वाला एक मुख्य पड़ाव हैI गौरीकुंड धार्मिक मान्यताओं को देखते हुए यहां भक्तगण केदारनाथ जाते समय गौरीकुंड में स्नान करते हैं तथा केदारनाथ के दर्शन के लिए जाते हैं।गौरीकुंड का सीधा संबंध माता गौरी से है। इसके पीछे अलग-अलग कथाएं जुड़ी है।
GauriKund Kedarnath Trek
GauriKund एक विशेष पड़ाव है यहां तक आप वाहन से जा सकते हैं इससे आगे का मार्ग लगभग 16 किलोमीटर का पैदल मार्ग है जहां आप घोड़ों का भी इस्तेमाल कर सकते हैंI
GauriKund History in Hindi
गौरीकुंड के लिए दो कथाएं काफी परिचय देते हैं। (1) माता पार्वती से पहले उनका शक्ति का जन्म हुआ था।जिसमें उन्होंने राजा दक्ष की पुत्री का रूप रखा था। उनका नाम माता सती था। भगवान शिव विवाह के पश्चात दक्ष अपने घर यज्ञ करवा कर सभी देवी देवताओं को यज्ञ में बुलाया। परंतु भगवान शिव को नहीं बुलाया।भगवान शिव से लड़कर माता सती अपने पिता के यहां यज्ञ में बिना बुलाए जा पहुंची।
राजा दक्ष के द्वारा भगवान शिव का अपमान किए जाने के बाद माता सती ने यज्ञ कुंड की अग्नि में आत्मदाह कर दिया था। इससे भगवान शिव ने राजा दक्ष का वध कर दिया था। इसके बाद भगवान शिव लंबी साधना के लिए चले गए थे। इसके कुछ वर्ष के पश्चात माता शक्ति का हिमालय पुत्री के रूप में पुनर्जन्म हुआ। जिससे उनका नाम पार्वती पड़ा। माता पार्वती ने भगवान को प्रसन्न करने के उद्देश्य से इस स्थान पर बैठकर वर्षों तक कठोर तपस्या की थी।
इसके बाद भगवान शिव माता पार्वती से विवाह करने को तैयार हो गए थे। 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित त्रियुगीनारायण मंदिर में हुआ था। यहां आज भी वह अग्नि जलती रहती है। मंदिर में कुंड की अग्नि जहां पर भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। वह आज भी उसी प्रकार जल रही है।
(2) दूसरी कथा के अनुसार कहा जाता है। कि गणेश माता पार्वती जी के पुत्र के रूप में माने जाते हैं। उन्होंने अपने शरीर की मेल से उनका निर्माण किया था।माता पार्वती इस कुंड में स्नान करने जा रही थी।तब उन्होंने गणेश को द्वारपाल के रूप में नियुक्त किया था। वह किसी को भी अंदर नहीं आने देने को कहा था।जब माता पार्वती अंदर स्नान कर रही थी।
तब भगवान शिव वहां पहुंचे।माता पार्वती की आदेश के अनुसार गणेश ने भगवान शिव को अंदर जाने से मना कर दिया। इससे क्रोधित होकर शिव ने गणेश जी का मस्तक धड़ से अलग कर दिया। बाद में माता पार्वती के रुष्ट हो जाने पर भगवान शिव ने एक हाथी के सर को गणेश जी के मस्तक में जोड़कर उन्हें जीवित कर दिया।
गौरीकुंड की एक विशेषता यह भी जानी जाती है कि यह झील का पानी गर्म होता है। भक्ति जब भी केदारनाथ जाते हैं तो यहां स्नान करके जाते हैं। इसका सबसे ज्यादा महत्व इसलिए भी है क्योंकि कितनी भी ठंड क्यों ना हो। झील का पानी हमेशा गर्म ही रहता है। 2013 में आई भयानक आपदा से सब कुछ नष्ट हो गया था।
केदारनाथ में वह विकराल 2013 का भयानक प्राकृतिक आपदा को कौन नहीं जानता।उसे आसपास के स्थान को नष्ट कर दिया था। इसमें गौरीकुंड भी एक था। पहले जो सरोवर यहां हुआ करता था ।अब उसकी जगह पानी का एक पतला धार यहां होता है। इसके साथ ही सरकार के द्वारा यहां पाइप की सहायता से गौरीकुंड का गर्म पानी उपलब्ध कराया जाता है।
यहां पर माता पार्वती को समर्पित गौरी मंदिर भी है। केदारनाथ जाने वाले भक्तगण पहले माता गौरी के मंदिर जाकर माता पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इसके बाद आधा किलोमीटर दूर सिर काटा मंदिर है। जो भगवान गणेश को समर्पित है।यदि आप अपना उत्तराखंड का कोई भी टूर बुक करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करके बुक कर सकते हैंI
GauriKund Kab Jana Chahiye
वैसे तो गौरीकुंड कभी भी जा सकते हैं। लेकिन भक्त अगर सर्दियों में यहां नहीं आते हैं। ऐसा इसलिए कि सर्दियों में 6 माह के लिए हम केदारनाथ के पट बंद हो जाते हैं। केदारनाथ के कपाट दिवाली के अगले दिन से बंद हो जाते हैं ।फिर मई के अक्षय तृतीया के दिन खुलते हैं इसलिए लोग गौरीकुंड भी तभी आते हैं। जब केदारनाथ के कपाट खुलते हैं।इससे भक्तगण दोनों तरफ के दर्शन कर लेते हैं। यहां ज्यादा भीड़ अक्टूबर माह में लगती है। उसे टाइम पर कर दिया बढ़ भी जाती है।
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