उत्तराखंड में मनाया जाने वाला घुघुतिया त्यौहार बहुत ही खास त्यौहारों में से एक है। यह उत्तराखंड के कुमाऊनी क्षेत्र के हर एक घर में मनाया जाता है। इस त्यौहार में घुघुती की माला बनाई जाती है। वैसे तो घुघुती एक पक्षी का नाम है। इस त्यौहार में लोग आता गुथकर घुघुती जैसा चित्रण बनाकर माला बनाते हैं। फिर उसे कौवे को सुबह खिलाकर खुद भी कहते हैं। तो आईए जानते हैं क्या है इस त्यौहार के पीछे की कहानी।
उत्तराखंड राज्य में मकर संक्रांति पर घुघुती के नाम का एक त्यौहार मनाया जाता है। जिसको घुघुतिया त्योहार कहा जाता है। यह कुमाऊं में बनाया जाता है गढ़वाल क्षेत्र में नहीं। इस त्यौहार में एक अलग ही रौनक और एक अलग ही उत्साह से भरा त्यौहार होता है क्योंकि यह साल की शुरुआत का सबसे पहला त्यौहार होता है। यह त्यौहार खास बच्चों के लिए होता है।
बच्चे इस दिन को घुघुती को कौवे को खिलाने के लिए बुलाते हैं। सुबह-सुबह कौवे गंगा स्नान करके घरों की तरफ आ जाते हैं और बच्चे छत पर जाकर कौवा को इस प्रकार बुलाते हैं- “काले कौवा काले घुघुती की माला खाले ” कहकर कौवे को बुलाते हैं तथा कौवा उन घुघुती मालाओं को खाता है। इस त्यौहार में संबंधित एक प्राचीन कथा काफी प्रसिद्ध है।
घुघुती त्यौहार की कहानी
कुमाऊं में चंद वंश के राजा कल्याण चंद राज करते थे। राजा कल्याण चंद्र की कोई संतान नहीं थी इसीलिए उनका कोई उत्तराधिकारी भी नहीं था। उनके मंत्री सोचता था कि राजा बाद में यह सारा राज्य मुझको ही दे देंगे। एक बार राजा कल्याण चंद्र अपनी पत्नी के साथ बागनाथ मंदिर में गए और संतान के लिए भगवान से प्रार्थना करने लगे।

बागनाथ भगवान की कृपा से उनके घर बेटा हो गया। जिसका नाम निर्भय चंद्र रखा गया। निर्भय को उसकी मां प्यार से “घुघुती” कह कर पुकारती थी। घुघुती के गले में एक मोती की माला थी। जिसमें घुंघरू लगे हुए थे। यह माला पहनकर राजा का बेटा बहुत ही खुश रहता था। जब कभी भी जब राजा का बेटा किसी भी चीज की जिद करता था।
तो उसकी मम्मी उसे डराने के लिए कहती थी। ज्यादा जिद ना कर नहीं तो मैं यह माला कौवे को दे दूंगी। इसे वह पहाड़ी भाषा में कहती थी “काले कौवा काले घुघुती माल खाले” यह सुनकर कई बार कौवे आ भी जाते थे। जिसको देखकर घुघुती जिद छोड़ देता था ।
जब घुघुती की मां के बुलाने पर कौवे आ जाते थे।तो वह कौवे को कोई भी चीज खाने को दे देती थी। धीरे-धीरे घुघुती की कौवौ के साथ दोस्ती हो गई। दूसरी तरफ मंत्री जो की राज पाठ के उम्मीद करें बैठा था। उसे घुघुती को देखकर बहुत गुस्सा आता था। उसने सोचा क्यों ना इसे मार दिया जाए। ताकि यह राजगद्दी उसे मिल जाए।
मंत्री ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर षड्यंत्र रचना शुरू कर दिया। एक दिन जब घुघुती खेल रहा था। तब उसने चुपचाप घुघुती को वहां से उठा लिया और घुघुती को जंगल की ओर ले गया। तो एक कवि ने देख लिया और जोर-जोर से काव-काव करने लगा। उसकी आवाज सुनकर घुघुती जोर-जोर से रोने लगा और अपनी माला को उतार कर दिखाने लगा।
इतने में बहुत सारे कौवे इक्कठे हो गए और मंत्री और उसके साथियों के ऊपर घुमने लगे। एक कौवे ने घुघुती के हाथ से माला ले ली और सभी कौवे ने एक साथ मंत्री और उसके साथियों पर हमला कर दिया। पंजों के हमला से मंत्री और उसके साथी घबराकर वहां से भाग खड़े हुए। घुघुती जंगल में अकेला रह गया।
वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया। तभी सभी कौवे भी उसी पेड़ में बैठ गए। एक कौवे हार लेकर महल गया था। वह सीधे महल में जाकर एक पेड़ पर माला लटक कर जोर-जोर से बोलने लगा। जब लोगों की नजर उसे पर पड़ी तो उसने घुघुती की माला घुघुती की मां के सामने डाल दी। माला सभी ने पहचान ली।इसके बाद कौवा एक डाली से दूसरी डाली में उड़ने लगा। समय अनुमान लगाया कि कौवा कुछ कहना चाहता है।
राजा और उसके घुड़सवार कौवे के पीछे लग गए। कौवा आगे आगे घुड़सवार पीछे-पीछे। कुछ दूर पर जाकर कौवा एक पेड़ पर बैठ गया। वहां राजा ने देखा कि उसके नीचे उसका बेटा सोया हुआ है।उसने बेटे को उठाकर गले से लगा लिया और घर को लौट आए।
मां ने घुघुती की माला देखकर कहा कि आज यह माल नहीं होती तो घुघुती जिंदा नहीं रहता। राजा ने मंत्री और उसके साथियों को मृत्युदंड दे दिया। घुघुती के मिल जाने पर घुघुती की मां ने बहुत सारे पकवान बनाए और घुघुती से कहा है कि यह पकवान अपने दोस्त कौवे को बुलाकर खिला दे।
घुघुती ने कौवा को बुलाकर खाना खिलाया। यह बात धीरे-धीरे सारे कुमाऊं में फैल गई और इससे यह त्यौहार बच्चों को त्यौहार के रूप में ले लिया गया। तब से हर साल इस त्यौहार को धूमधाम से मनाया जाता है। इसके लिए हमारे यहां एक कहावत भी मशहूर है कि श्राद्धो में ब्राह्मण और उत्तरायनी को कौवे मुश्किल से मिलते हैं।
कैसे बनाते हैं घुघुती?
सामग्री
- गेहूँ का आटा
- गुड
- पानी
- सूजी
- तेल मोयन के लिए
- सफ़ेद तिल
- सॉफ
- तेल तलने के लिए
कुकिंग निर्देश
Step-1
गुड को छोटे छोटे टुकड़ों में तोड़ ले फिर एक बरतन में गुड़ और 1/3 कप पानी डाल कर गुड़ को मिडियम आंच पर लगातार चलाते हुए गुड़ गलने तक पकाए।
Step-2
गुड़ और पानी की चारानी गाढ़ी नहीं करनी है। गैस बंद कर दे और ठंडा होने पर छान ले।,
Step-3
एक बाउल में गेहूं का आटा, सूजी, सौंफ साफ़ेद तिल, मोयन का तेल डाल कर अच्छी तरह से मिक्स करे।
Step-4
थोड़ा थोड़ा गुड़ का पानी डाल कर नरम आटा गूँथ ले और 10 मिनट के लिए ढक कर रख दे।
Step-5
10 मिनट के बाद सूजी फूल जाने के कारण आटा थोड़ा सख्त हो जाता है इसलिए आटे को 2-3 मिनट अच्छा तरह से मल कर चिकना कर ले।
Step-6
आटे से छोटी-छोटी लोई बना ले और फिर किसी समतल सतह पर लोई को पतला और लम्बा रोल बना ले।
Step-7
अब इस रोल को मोड़ ले (एक सिरे से दूसरे सिरे तक) और नीचे के भाग को 2 से 3 बार विस्ट कर ले इसी तरह सभी बना है।
Step-8
कुछ घुघृति को शक्कर पारे की तरह भी बना ले है।
इसी तरह सभी बना ले।
Step-9
कढ़ाई में तेल गरम करे और निडियम धीमी आंच पर घुघुति डाल कर गोल्डन होने तक अलट पलट कर तल ले।
तैयार है आपके घुघुति।
इसे गुवाहाटी त्यौहार के दिन बच्चे सुबह एक माला बनाकर गले में पहन कर छत पर जाते हैं और कौवे को बुलाकर कहते हैं –
‘काले कौवा काले घुघुति माला खा ले’।
‘लै कौवा भात में कै दे सुनक थात’।
‘लै कौवा लगड़ में कै दे भैबनों दगड़’।
‘लै कौवा बौड़ मेंकै दे सुनौक घ्वड़’ ।
‘लै कौवा क्वे मेंकै दे भली भली ज्वे’।
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