माँ पूर्णागिरि मंदिर भारत में उत्तराखंड राज्य के चंपावत जिले के टनकपुर शहर में थुलीगढ़ गांव में स्थित है। यह मंदिर देवी मां पार्वती को समर्पित है।
समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर टनकपुर से लगभग 20 किलोमीटर की में स्थित है। माँ पूर्णागिरि मंदिर का अपना महत्व है और राज्य के कोने-कोने से श्रद्धालु मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं।
माँ पूर्णागिरि मंदिर का महत्व
अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए श्रद्धालु यहां पर लाल चुनरी या धागा बदते है और मनोकामना पूरी होने पर उस धागे को खोलने आते है मंदिर का भक्तों के बीच बहुत महत्व है। इसे भारत के पवित्र 108 सिद्ध पीठों तथा 52 सक्तिपिठो में से एक माना जाता है।
हर साल मार्च-अप्रैल के महीने में आने वाली चैत्र नवरात्रि में हजारों श्रद्धालु माँ पूर्णागिरि मंदिर में माता के दर्शन करने आते हैं। माता सभी भक्तो की मुराद पूरी करती है।

मान्यता है कि माँ पूर्णागिरि मंदिर के दर्शन करने के बाद सिद्ध बाबा मंदिर जो की पूर्णागिरी से लगभग 38 किलोमिटर दूर नेपाल में स्थित है। के दर्शन करते हैं। तभी यात्रा सार्थक मानी जाती है।
माँ पूर्णागिरि मंदिर की नेपाल में स्थित बाबा सिद्धनाथ धाम से जुड़ी अहम कड़ी
माँ पूर्णागिरि मंदिर के साथ बाबा सिद्धनाथ का महत्व भी जुड़ा है। कहा जाता है कि बाबा सिद्धनाथ देवी पूर्णागिरि के भक्त थे जो रोजाना देवी के दर्शन के लिए दरबार में हाजिरी लगाते थे।
कहा जाता है कि एक दिन देवी पूर्णागिरि अपने कक्ष में श्रृंगार कर रही थीं कि इस बीच अचानक बाबा सिद्धनाथ देवी के शयन कक्ष में प्रवेश कर गए जिससे क्रोधित होकर देवी ने बाबा के शरीर के टुकड़े कर दिए।
जब देवी को पता चला कि शयन कक्ष में प्रवेश करना वाला कोई और नहीं उनके अनन्य भक्त बाबा सिद्धनाथ थे तो देवी को पछतावा हुआ। तब देवी ने बाबा को वरदान दिया कि मेरे दर्शन के बाद बाबा सिद्धनाथ के दर्शन करने से ही श्रद्धालुओं की यात्रा और मनोकामनाएं पूरी होंगी।
बताया जाता है कि बाबा सिद्धनाथ के शरीर के टुकड़े जहां-जहां गिरे वहां अलग-अलग रूप में उनके मंदिर स्थापित हुए। माँ पूर्णागिरि मंदिर के ठीक सामने नेपाल में भी बाबा के शरीर का एक टुकड़ा गिरा था जहां बाद में बाबा का मंदिर स्थापित हुआ।
माँ पूर्णागिरि मंदिर के पौराणिक महत्व
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, सत-युग में, सती (मां पार्वती) दक्ष प्रजापति की बेटी थीं और वह भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं। दक्ष प्रजापति भगवान शिव से नफरत करते थे। और वो सती का विवाह भगवान शिव से नही करना चाहते थे।
सती ने दक्ष की इच्छा के विरुद्ध भगवान शिव से विवाह किया। तो उन्होंने शिव से बदला लेने के लिए एक यज्ञ किया और सभी देवताओं को आमंत्रित किया और अपमान करने के लिए भगवान शिव और सती को आमंत्रित नही किया।
पीताप्रेम में सती बिना आमंत्रण के भी खुद को उस यज्ञ मे जाने से रोक नही पाई और यज्ञ में चले गई आमंत्रण ने होने के कारण दक्ष ने वहा उनको अपमानित किया और भगवान शिव का भी अपमान किया । सभी के सामने अपमान होने पर सती ने अग्नि में आत्मदाह कर लिया।
जैसे ही भगवान शिव को इस बारे में पता चला तो शिव क्रोधित हो गय और उन्होंने दक्ष का सिर काट दिया। उन्होंने सती के शरीर के अवशेषों को दु: ख के साथ लिया और ब्रह्मांड के माध्यम से विनाश का नृत्य किया।
जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे, वे स्थान अब शक्तिपीठ के रूप में जाने जाते हैं। पूर्णागिरी में सती का नाभी का हिस्सा गिरा था, जहां पूर्णागिरी का वर्तमान मंदिर स्थित है।
माँ पूर्णागिरि मंदिर केसे जाए?

चंपावत जिले में काली नदी के दाहिने किनारे पर यह मंदिर पूर्णागिरी देवी को समर्पित है। टनकपुर रेलवे स्टेशन से 17 किलोमिटर की दूरी में थुलीगड़ गांव में 3 किलोमीटर पैदल सीढ़िया में चल कर समुंद्र तल से 3000 मीटर की ऊंचाई में स्थित है।
देखा गया है की चैत्र नवरात्रि में यहां भक्तो की संख्या हजारों में होती है। मां के भक्त कही किलोमीटर नंगे पैर पैदल यात्रा करके भी माता के दर्शन करने आते हैंI
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