त्रियुगीनारायण मंदिर वह मंदिर है जहां पर महादेव और माता पार्वती का विवाह हुआ था I यहां पर दूर-दूर से लड़का और लड़की विवाह हेतु आते हैंI माना जाता है त्रियुगीनारायण मंदिर में विवाह करने वाले जोड़ों का वैवाहिक जीवन हमेशा सुखी देता है। साथ ही जो लोग यहां मंदिर के दर्शन करने आते हैं।
त्रियुगी नारायण मंदिर का इतिहास
भगवान शिव ने माता पार्वती का विवाह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। जिसके बाद तीनों लोको में तैयारी शुरू हो गई।हिमालय राज्य की नगरी हिमवंत की राजधानी त्रियुगीनारायणगांव ही था। इसलिए त्रियुगीनारायण गांव के इस त्रियुगी नारायण मंदिर में शिव और पार्वती का विवाह कार्यक्रम कराने का निर्णय लिया गया। इस विवाह में सभी देवी देवता स्वर्ग लोक से पधारे थे।

यहीं पर भगवान विष्णु ने माता पार्वती को अपनी बहन के रूप में स्वीकार किया था तथा भाई के सभी कर्तव्य भगवान विष्णु ने निभाई थी।यहां पर स्वयं भगवान ब्रह्मा विवाह के पंडित बने थे तथा उन्होंने ही विवाह संपन्न कराया था।यहां पर आज भी अग्नि कुंड जल रही है।
जो शिव और पार्वती की शादी के समय कुंड था।जिसमें भगवान शिव और पार्वती ने फेरे लिए थे। त्रियुगी मंदिर कहा जाता है क्योंकि यह तीनों युग से कुंड की अग्नि जली आ रही है। यहां पर 3 कुंड देखने को मिलते हैं। जो कि ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों की नहाए हुए कुंड है।
शिव पार्वती की खूबसूरत तस्वीर








अखंड धूनी
त्रेता युग से चली आ रही है। जहां पर भगवान शिव और पार्वती ने सातों फेरे लिए थे। यहीं पर उनका विवाह संपन्न हुआ था। यही कारण है कि इस मंदिर को त्रियुगी मंदिर कहा जाता है।
ब्रह्मा कुंड
गुंडे हैं जिसमें 1 कुंड ब्रह्मा कुंड के नाम से प्रसिद्ध है जहां पर ब्रह्मा जी ने विवाह संस्कार शुरू करने से पहले इस कुंड में स्नान किया था जिसके बाद इस कुंड का नाम ब्रह्मकुंड पड़ गया।

विष्णु कुंड
त्रियुगी नारायण मंदिर के इस मंदिर में दूसरे कुंड पर भगवान विष्णु ने स्नान किया था इसलिए उस कुंड का नाम विष्णु कुंड पड़ गया।
रूद्र कुंड
तीसरे कुंड में भगवान शिव पार्वती के विवाह की साक्षी बनने के लिए स्वर्ग लोक के सभी देवी देवताओं रहे थे।रूद्र कुंड में सभी के द्वारा स्नान किया गया था इसलिए इसका नाम लक्ष्मी कुंड पड़ गया।

त्रियुगी नारायण मंदिर का इतिहास का स्तंभ
मंदिर में पतली डंडी बनी है।यह मान्यता है कि भगवान शिव को विवाह में एक गाय मिली थी। उस गाय को इसी डंडी से बांधा गया था।यह स्तंभ आज भी उसी स्थान पर वैसी ही खड़ा है।
ब्रह्मशिला
जहां भगवान शिव और पार्वती ने विवाह किया था।उस स्थान को ब्राह्म शीला के नाम से जाना जाता है।

त्रियुगी नारायण मंदिर का महत्व
वह अखंड धूनी की भस्म में अपने साथ लेकर जाते हैं। उनका वैवाहिक जीवन में कोई भी बाधा ना हो तथा सुख शांति से रहे।मंदिर में रुद्र कुंड है जिससे मान्यता है कि जिस जोड़े के पास संतान सुख नहीं होता है। अगर वह इस कुंड में स्नान कर ले तो उस व्यक्ति को संतान की प्राप्ति की इच्छा पूर्ण हो जाती है। इसलिए कई निसंतान दंपत्ति इस कुंड में स्नान करने आती है।
FAQs:
क्या त्रियुगीनारायण मंदिर में मेरी शादी हो सकती है?
हां त्रियुगीनारायण मंदिर मैं शादी कोई भी कर सकता है लेकिन यहां पर केवल 20 से 30 लोगों की रहने की व्यवस्था हैI तो जब भी शादी के लिए आए तो केवल 20 से 25 लोगों के साथ आएंI
विवाह के लिए कौन सा मंदिर अच्छा है?
विवाह के लिए त्रियुगीनारायण मंदिर सबसे अधिक शुभ माना गया है क्योंकि यहां पर शिव पार्वती का विवाह हुआ थाI
What is Triyuginarayan Temple famous for?
त्रियुगी नारायण मंदिर में शिव पार्वती का विवाह हुआ था इसलिए यह पूरे विश्व में विख्यात हैI
When should I visit Triyuginarayan temple?
यहां पर बरसात के समय ना आए सबसे अच्छा आने का समय अक्टूबर से मार्च माह हैI
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