जागेश्वर धाम उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित है। जागेश्वर धाम से ही शिवलिंग पूजा का आरंभ हुआ था यह महादेव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है जागेश्वर मंदिर को उत्तराखंड का पांचवा धाम कहा जाता है। यह मंदिर बहुत ही सुंदर और अद्भुत मंदिरों में से एक है। यह उत्तराखंड में सबसे बड़ा मंदिर समूह है। यह मंदिर देवदार के जंगलों के बीच में स्थित है।
जागेश्वर धाम का निर्माण किसने करवाया?
यह मंदिर 125 मंदिरों का समूह है। जिसमें चार पांच मंदिर प्रमुख है। जिनमें विधि विधान से पूजा होती है। जागेश्वर धाम मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए काफी प्रसिद्ध है।इसकी कला बहुत ही अद्भुत कलाओं में से एक है। बड़े-बड़े पत्थरों से निर्मित यह मंदिर बेहद ही खूबसूरत मंदिरों में से एक है। यह मंदिर भगवान शिव को अर्पित है। यहां पर शिवजी की पूजा के साथ-साथ माता, सूर्य देव,हनुमान, दुर्गे कालेश्वर की भी पूजा की जाती है।

सावन के महीने में यहां हर दिन पर्व मनाया जाते हैं। इस मंदिर में श्रद्धालु तथा भक्त अलग-अलग शहरों से आते हैं। इस मंदिर की खासियत है कि यहां पर विशेष है। पहला शिव और दूसरा शिवजी के महामृत्युंजय रूप। यहां पर लोग कर्मकांड, पार्थिव पूजन, जप आदि के लिए भी आते हैं।
यहां विदेशी पर्यटक भी देखने को आपको आसानी से मिल जाएंगे। जागेश्वर मंदिर हिंदुओं के सभी बड़े देवी देवताओं के मंदिर हैं। यहां महामृत्युंजय जाप से मृत्यु तुरंत टल आ जाती है तथा भक्तों के कष्ट दूर होते हैं। इस मंदिर का निर्माण आठवीं दसवीं शताब्दी में हुआ था। इस मंदिर में समूह का निर्माण कत्यूरी राजाओं द्वारा कराया था।
लेकिन लोगों का मानना है कि इसे पांडवों ने बनाया था। इतिहास के पन्नों को खोला जाए तो उसमें कत्यूरी राजाओं तथा चंद्र राजाओं द्वारा बनाया गया है। यहां पर मुख्य मंदिरों में चंडी- का- मंदिर, मृत्युंजय मंदिर,नवदुर्गा मंदिर, पिरामिड मंदिर, सूर्य देव का मंदिर, दंदेश्वर मंदिर, नवाग्रह मंदिर जैसे बड़े मंदिर हैं। जबकि दंदेश्वर मंदिर जागेश्वर का सबसे बड़ा मंदिर है।

जागेश्वर धाम का इतिहास जागेश्वर
मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह ज्योतिर्लिंग 8 ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इसी योगेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। महाभारत में भी इसका वर्णन देखने को मिलता है। जागेश्वर के इतिहास के अनुसार उत्तर भारत में गुप्त साम्राज्य के दौरान हिमालय की पहाड़ियों में कुमाऊं क्षेत्र में कत्यूरी राजा था।
जिसने मंदिर का निर्माण उसी काल में कराया था।उसी वजह से मंदिर में गुप्त साम्राज्य का झलक दिखाई देती है। ऋग्वेद में “नागेशं दारूकावने” के नाम से भी उल्लेख मिलता है।जागेश्वर धाम शिवजी का सर्वप्रथम शिवलिंग पूजा जाने वाले मंदिरों में से एक है।
यही वह मंदिर है जहां सबसे पहले शिवलिंग की पूजा शुरु हुई। तभी से पूरे भारतवर्ष में शिवलिंग की पूजा होने लगी।यहां पर बड़े बड़े अक्षरों में महामृत्युंजय मंत्र लिखा हुआ है। जो कि यमराज से भक्तों की रक्षा करते हैं। इस मंत्र को याद करने मात्र से यमराज आपको छू भी नहीं सकते।
जागेश्वर मंदिर यहां के चमत्कारी मंदिरों में से एक है। यहां पर पहले शिवलिंग पर एक दिव्य शक्ति विराजमान थी। जिससे सभी मनोकामना पूर्ण होती थी। पर लोगों ने इसका दुरुपयोग करना शुरू कर दिया।यह बात आदि शंकराचार्य को जब पता चली तो उन्होंने मंत्र उच्चारण से इस शक्ति को बंद कर दिया।जानकारी के लिए बता दें। आदि शंकराचार्य शिव जी के ही रूपों में से एक माने जाते हैं।

जिन्होंने बद्रीनाथ, केदारनाथ जैसे बड़े-बड़े मंदिर तथा पाताल भुवनेश्वर जैसे शक्तिशाली मंदिरों की खोज की तथा उनका प्रचार प्रसार किया।जागेश्वर धाम में 150 छोटे बड़े मंदिर हैं। मंदिर का निर्माण लकड़ी और सीमेंट की जगह पर बड़े-बड़े पत्थरों से किया गया है।दरवाजे की चौखट में अंदर देवी देवताओं की प्रतिमाएं बनाई गई हैं।जागेश्वर को हाटकेश्वर और पट्टी पारुण के नाम से भी जाना जाता हैI
FAQs
जागेश्वर मंदिर की स्थापना किसने की?
इतिहास के पन्नों को खोला जाए तो उसमें कत्यूरी राजाओं तथा चंद्र राजाओं द्वारा बनाया गया है।
जागेश्वर के मुख्य देवता कौन है?
भगवान शिव जागेश्वर धाम के मुख्य देव हैंI
जागेश्वर में कितने मंदिर हैं?
यह मंदिर 125 मंदिरों का समूह है। जिसमें चार पांच मंदिर प्रमुख है।
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