मां धारी देवी को उत्तराखंड के रक्षक के रूप में जानी जाती है। मां धारी देवी को महाकाली की शक्ति रूप माना जाता है। धारी देवी चारों धामों को रक्षा प्रदान करती है। मां धारी देवी का नाम धारी इसलिए रखा गया क्योंकि वह चारों धामों को रक्षा देती है।
मां धारी देवी मंदिर कहा हैं?
धारी देवी को उत्तराखंड की संरक्षक देवी माना जाता है और इनका मंदिर श्रीमद् देवी भागवत द्वारा भारत के 108 शक्ति स्थलों में से एक है। मां धारी देवी मंदिर उत्तराखंड के राज्य मे पौड़ी जिले के श्रीनगर गढ़वाल में अलकनंदा नदी के तट पर है। यह मंदिर उत्तराखंड के श्रीनगर गढ़वाल से 15 किलोमीटर ,रुद्रप्रयाग से 20 किलोमीटर और दिल्ली से 360 किलोमीटर की दूरी में है।

मां धारी देवी मंदिर का इतिहास
मां धारी देवी की पूजा धारी गांव के पांडे ब्राह्मणों द्वारा की जाती है। मां धारी देवी मंदिर जितनी कृपालु और मनोकामना पूर्ण करने वाली देवी है। उतनी ही क्रोधी देवियों में से भी एक है। मां धारी देवी का विकराल रूप तो 2013 को देखा गया था।जब माता रानी की मूर्ति को मंदिर से हटा दिया गया था। तब 2013 में उत्तराखंड को प्रलय का सामना करना पड़ा। जो कि केदारनाथ में देखने को मिला।
पूरा उत्तराखंड डर के मारे रातों को सो नहीं पाता था। जब मां की मूर्ति पुनः उसी स्थान पर स्थापित की गई। तब माता रानी के आंखों से आंसू गिर गए। माता के अलग-अलग चमत्कार मंदिर में होते हैं। माता रानी एक दिन में तीन बार अपने रूप बदलती है। जिसमें सुबह के समय वह कोमल त्वचा की कन्या के रूप में दिखाई पड़ती है।दिन में वह एक औरत के रूप में दिखाई पड़ती है तथा शाम के समय वह एक बूढ़ी औरत का रूप ले लेती है।

धारी देवी सात भाइयों की इकलौती बहन थी। मां धारी देवी अपने सात भाइयों से बहुत ही ज्यादा प्रेम करती थी तथा अलग-अलग प्रकार के खाना और अपने भाइयों की सेवा करती थी। उनकी उम्र 7 वर्ष की थी। उनके भाइयों को पता चला कि उनकी बहन के ग्रह उनके लिए खराब है।तो उनके भाई उनसे नफरत करने लगे।धारा देवी अपने भाइयों को बचपन से ही बहुत प्यार करती थी क्योंकि उनके माता-पिता बचपन में ही गुजर गए थे। अपने भाइयों को ही अपना सब कुछ मानती थी ।माता पिता के गुजर जाने पर उनकी देखरेख भाइयों के हाथ से हुई।
कुछ समय बाद उनके पांच भाइयों की मृत्यु हो गई।उनके दो शादीशुदा भाइयों ने सोचा कि इनकी मृत्यु धारी देवी के कारण ही हुई है क्योंकि उनके गृह उनके लिए अच्छे नहीं थे। तब उन दोनों भाइयों ने मां धारा देवी की 13 साल की उम्र में उनके सर को उनके धड़ से अलग कर दिया और उनके मरे हुए शरीर को रात में नदी में ही फेंक दिया।मां धारी देवी का सरनदी में बहते हुए एक गांव की तरफ पहुंचा है।जिसका नाम कल्यासौड़ गांव था। वहां पर एक व्यक्ति सुबह सुबह कपड़े धो रहा था। तब उसने मां धारीदेवी को बहते हुए देखा उसने सोचा कोई कन्या बह रही है।

उस व्यक्ति ने कन्या को बचाना चाहा। परंतु उसे सोचा कि मैं जाऊं तो कैसे जाऊं।पानी का बहाव बहुत ही तेज था।इस डर से घबरा गया कि कहीं पानी की तेज लहरों मुझे भी ना डूबा ले जाए।उसने सोचा अब कन्या को नहीं बचा पाएगा।तभी उसे नदी से एक आवाज आई। तू घबरा मत तू मुझे यहां से बचा ले।मैं तुझे आश्वासन देती हूं कि तू जहां जहां पैर रखेगा, वहां वहां तेरे लिए सीड़ी बना दूंगी।
यह सुनकर व्यक्ति का साहस बढ़ा और उसने कदम आगे बढ़ाया।जहां जहां उसने कदम रखे ,वहां वहां सीड़ी बनती चली गई। जब उसने कन्या को पकड़ा तो वह डर गया क्योंकि उसके हाथ में कटा हुआ सिर आया ।तो वह घबरा गया फिर उसे आवाज आई तू घबरा मत। मैं देव रूप में हूं और मुझे एक पवित्र,सुंदर स्थान पर एक पत्थर पर स्थापित कर दे।
उस व्यक्ति ने वही किया जो कटे हुए सिर ने उस व्यक्ति से बोला था क्योंकि उसके लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं था। कटे हुए सिर ने उसे आवाज दी, उसके लिए सीढ़ियां बनाएं और उसे रक्षा का आश्वासन दिया वह समझ गया कि यह एक देवी है।आज यह कटा हुआ सिर मां धारी देवी के रूप में पूजा जाता है जोकि उत्तराखंड के चार धामों की रक्षा करती है।
धारी देवी कहाँ स्थित है?
Dhari Devi Mandir उत्तराखंड के राज्य मे पौड़ी जिले के श्रीनगर गढ़वाल में अलकनंदा नदी के तट पर है।
धारी देवी कौन है?
Maa Dhari Devi को उत्तराखंड के रक्षक के रूप में जानी जाती है। मां Dhari Devi को महाकाली की शक्ति रूप माना जाता है। Dhari Devi चारों धामों को रक्षा प्रदान करती है।मां धारी देवी का नाम धारी इसलिए रखा गया क्योंकि वह चारों धामों को रक्षा देती है।
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