तरुण उत्तराखंड में सबसे ज्यादा खाया जाने वाला फल है। वैसे तो तरुण पहाड़ों से लेकर मैदानी क्षेत्रों सभी जगह उगाया जा सकता है। लेकिन इसे उत्तराखंड में ज्यादा उगाया जाते हैं। फलों में से एक है।
भगवान शिव पर चढ़ता हैI तरुण
यह फल नवंबर से जनवरी के महीने के बीच होता है। इस फल को बहुत ही ज्यादा शुद्ध फलों में से एक माना जाता है।क्योंकि इसे जमीन से खोदकर निकाला जाता है। तरुण की बेल होती है तथा इसका फल अर्थात तरुण जमीन के अंदर होता है।
यह शिव जी को बहुत ही ज्यादा प्रिय फलों में से एक है। शिव जी को कंद फल काफी पसंद है। उन्हीं कंद फल में से एक तरुण भी है। शिवरात्रि के दिन पहाड़ों में शिव जी को तरुण का फल भोग लगाया जाता है तथा उत्तराखंड वासी लोग तरुण खाकर ही अपना व्रत पूर्ण करते हैं।
तरुण का उपयोग लोग सब्जी की तरह भी करते हैं।इसकी बहुत ही स्वादिष्ट सब्जी बनती है।जिस प्रकार आलू की अलग-अलग प्रकार की सब्जी बनाई जा सकती है।उसी प्रकार तरुण की भी अलग-अलग प्रकार की सब्जियां बनाते हैं।
कुछ लोग इसे आटे में भरकर भी पराठे भी बनाते हैं।तरुण को उबालकर खाया जाता है । दही और मट्ठे में डालकर भी इसकी सब्जी बनाई जाती है ।यह बहुत ही स्वादिष्ट होता है।
आलू की अपेक्षा यह ज्यादा महंगा बिकता है। इसका साइज बड़े से छोटा कुछ भी हो सकता है। यह 10 किलो तक का भी एक तरुण हो सकता है। बिहाङ क्षेत्रों में इसका उत्पादन ज्यादा है। इसे पाने की कमजोर होती है इसलिए यह है। इसलिए यह कम पानी वाली जगह में आसानी से उग जाता है।

ऐतिहासिक पुराणों के द्वारा तथ्य मिलते हैं।कि जब राम जी को 14 वर्ष का वनवास मिला था तब राम जी ने जंगलों में तरुण खाकर गुजारा किया था। तरुण का वर्णन महाभारत में भी मिलता है। जब पांडवों का अज्ञातवास मिला था।
तो उन्होंने भी तरुण खाकर गुजारा किया था।तरुण बहुत ही पुराना फल है। जो कि आज मैदानी क्षेत्रों तथा बहुत सी जगह पर लुप्त हो चुका है। लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में आज भी इस फल को उतना ही महत्व दिया जाता है। जितना महत्व और फल सब्जियों को दिया जाता है।
पहाड़ी क्षेत्रों में तरुण को फल की तरह इस्तेमाल किया जाता है। जो भी लोग व्रत या उपवास करते हैं।वह Tarud खाकर अपना व्रत पूर्ण करते हैं।
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