देवभूमि उत्तराखंड में बहुत से पौराणिक और सिद्ध शक्तिपीठ है उन्ही शक्तिपीठ में से एक शक्तिपीठ दूनागिरी वैष्णवी मंदिर है। जम्मू में स्थित वैष्णो देवी के बाद उत्तराखंड में दूनागिरी वैष्णो देवी का दूसरा शक्तिपीठ है जो की उत्तराखंड मे अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट से लगभग 15 किलोमिटर की दूरी में स्थित है जो की भक्तो के लिए माता की आपार आस्था और श्रद्धा का केंद्र है
दूनागिरी मंदिर का इतिहास:
हिमालय गजिटेरियन के लेख ईटी एडकिंशन के अनुसार मंदिर होने का प्रमाण 1181 के शिलालेखों में मिलता है। कत्यूरी शासक सुधारदेव ने 1318 ईसवी में मंदिर निर्माण कर दुर्गा माता जी की मूर्ति स्थापित की मंदिर के बारे मे कहा जाता है की त्रेता युग में जब लक्ष्मण को मेघनाथ द्वारा भ्रम सकती लगी थी
तब सुशेन वेद्य ने हनुमान जी से द्रोणाचल नाम के पर्वत से संजीवनी बूटी लाने तो कहा थाI हनुमान जी जब संजीवनी लेने पहुंचे तो रावण को पता चल गया तब रावण ने अपनी शक्तियों से द्रोणाचल पर्वत में सभी जड़ी बूटियां को देखने मे एक समान कर दिया
जिससे की हनुमान जी संजीवनी बूटी नही ढूंढ पाए तो उन्होंने अपने साथ पूरा द्रोणाचल पर्वत ही ले जाने का निर्णय किया और जब वह पर्वत उठा कर लाने लगे जिसमे संजीवनी बूटी पाई जाती है। तो पर्वत से एक हिस्सा टूट कर यहां पर गिर गया तभी से यहां इस पर्वत मे दूनागिरी मंदिर बनाया गयाI इस पर्वत मे कई प्रकार की जड़ी बूटियां आज भी पाई जाती है।
दूनागिरी मंदिर एक विशाल पर्वत की चोटी पर स्थित है समुद्री तल से मंदिर की ऊंचाई 8000 फीट है सड़क से लगभग 400 से 500 सीढ़ियां चढ़कर मंदिर तक पहुंचा जाता है मंदिर की सीढ़ियों मैं लगी हजारों एक समान साइज की घंटियां मंदिर की खूबसूरती में चार चांद लगाती हैं
दूनागिरी मंदिर में देखरेख एवं रखरखाव का कार्य “आदि शक्ति मां दूनागिरी मंदिर ट्रस्ट” द्वारा किया जाता है दूणागिरी मंदिर कि समिति द्वारा मंदिर में रोजाना भक्तजनों के लिए भंडारे का आयोजन किया जाता हैI
दूणागिरी मंदिर में देवी के मंदिर से पहले गणेश भगवान, हनुमान भगवान एवं भैरव जी के मंदिर है। मंदिर में माता की कोई मूर्ति नहीं है प्राकृतिक रूप से निर्मित सिद्ध पिण्डियां माता भगवती के रूप में पूजी जाती है दूणागिरी मंदिर में अखंड ज्योति जलते रहती है
दूनागिरी मंदिर में मां दूनागिरी वैश्णवी के रूप में विराजमान है इसलिए मंदिर परिसर में किसी प्रकार की बलि नहीं दी जाती है यहां तक की माता को भेंट स्वरूप चढ़ाया गया नारियल भी मंदिर परिसर में नहीं फोड़ा जाता हैI
दूनागिरी मंदिर की धार्मिक मान्यताएं
देवी पुराण के अनुसार अज्ञातवास के दौरान पांडव ने युद्ध में विजय प्राप्त कर तथा द्रोपती ने सतीत्व की रक्षा के लिए दूनागिरी की दुर्गा रुप में पूजा की। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य जी ने इस पर्वत पर तपस्या की थी जिससे कि इस पर्वत का नाम द्रोणाचल पर्वत रखा गया है
इस मंदिर का नाम उत्तराखंड के सबसे प्राचीन सिद्ध शक्तिपीठों में आता है मां वैष्णवी को समर्पित यह मंदिर भक्तों के लिए गहरी आस्था का केंद्र बना हुआ है जहां रोजाना सैकड़ों भक्त आते हैं और नवरात्रि दुर्गा पूजा मैं यहां हजारों की संख्या में भक्तों की आवाजाही लगी रहती हैI
लोगों की श्रद्धा है की अगर कोई विवाहित महिला सच्ची भक्ति से मां दूनागिरी मंदिर परिसर में अखंड ज्योति उजागर कर संतान प्राप्ति के लिए पूजा करती है। तो उसको माता के वरदान स्वरुप संतान प्राप्ति होती है।
दूनागिरी मंदिर के आसपास के जितने भी गांव हैं वहां से विवाह होने के पश्चात वैवाहिक जोड़ा माता के दर्शन के लिए दूणागिरी मंदिर अवश्य जाता है। माता के भक्तों चुनरी बांध कर माता से मुरादे मांगते हैं और मुराद पूरी होने के पश्चात दोबारा मंदिर जा कर माता के दर्शन कर चुनरी खोल कर आते है।
दूनागिरी मंदिर कैसे पहुंचे
देवभूमि उत्तराखंड में बहुत से पौराणिकऔर सिद्ध शक्तिपीठ है उन्ही शक्तिपीठ में से एक शक्तिपीठ दूनागिरी वैष्णवी मंदिर है। जम्मू में स्थित वैष्णो देवी के बाद उत्तराखंड में दूनागिरी वैष्णो देवी का दूसरा शक्तिपीठ है जो की उत्तराखंड मे अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट से लगभग 15 किलोमिटर की दूरी में स्थित है
जो की भक्तो के लिए माता की आपार आस्था और श्रद्धा का केंद्र है यह मंदिर बास–देवदार–बुरास–अकेसिया और सुरई समेत विभिन्न प्रजाति के पेड़ो के बीच में स्थित है मंदिर के आसपास की हरियाली वह शांत एवं ठंडा वातावरण मंदिर में आने वाले भक्तों को बहुत लुभाता हैI
अगर आप कही बाहर से माता के दर्शन करने आ रहे है तो आपको हल्द्वानी से रानीखेत के लिया आसानी से कोई टैक्सी या रोडवेज बस मिल जाएगी रानीखेत से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी आप गाड़ी से तय करेंगे तो आप मां दूनागिरी मंदिर पहुंच जायेंगे।
दूनागिरी के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन भी हलद्वानी है जो की दूनागिरी से लगभग 135 किलोमिटर की दूरी मे स्थित है और निकटतम हवाईअड्डा 160 किलोमीटर दूर पंतनगर है ।
निष्कर्ष
हम लास्ट में यही कहना चाहेंगे कि आप यहां आकर माता वैष्णो देवी के दर्शन करेंI जहां का प्रसाद ग्रहण करें आपको यहां पर बहुत मजा आने वाला है क्योंकि आसपास के पहाड़ देखने लायक होते हैं और कुछ ही दूरी पर आपको यहां पर स्वर्ग पूरी पांडव खोली भी मिलता हैI यहां पर भी आप खूब इंजॉय कर सकते हैंI
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