सती कुंड कनखल के दक्षिण में स्थित दक्ष महामंदिर बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह मंदिर हरिद्वार शहर से बिल्कुल सटा हुआ है जो कि भगवान शिव का मंदिर माना जाता है।
सती कुंड कनखल हरिद्वार
इस मंदिर को भगवान शिव के ससुराल के नाम से भी संबोधित किया जाता है।इस मंदिर को यह नाम भगवान शिव की अर्धांगिनी देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति के नाम से मिला है। पुरानी पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार महाराज दक्ष ने इस स्थान पर बहुत ही बड़ा यज्ञ आयोजन करवाया था।
जिसमें उसने सभी देवी देवताओं को बुलाया गया परंतु भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया।भगवान शिव की पत्नी सती जो की दक्ष की पुत्री थी। उन्होंने भगवान शिव से जिद करके अपने पिता के घर आ गई तथा वहां पर उन्होंने भगवान शिव का बहुत अपमान सुना।
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पति की बात ना मानकर तथा पिता के ऐसे अपमान, कठोर वचन सुनकर सती ने अपने आप को अपमानित महसूस किया तथा क्रोधित हो गई।
माता सती अपने दुर्गा रूप में प्रकट हुई और क्रोध में आकर उन्होंने दक्ष से कहा “मैं चाहूं तो अभी तेरे प्राण ले लूं” पर मैंने तेरे घर पुत्री बनकर जन्म लिया है। जिस कारण मैं पिता को मार कर इस पाप की भागीदारी नहीं बन सकती।
तूने मेरे पति का अपमान किया है और मैंने उनकी बात ना मानकर उनकी इच्छा के विरुद्ध इस यज्ञ में आई। मैं क्षमा के योग्य नहीं हूं तथा ऐसे वचन कहकर माता सती ने यज्ञ कुंड में छलांग लगा दी। जब भगवान शिव के गणो को यह बात का पता चला।
तो उन्होंने दक्ष की हरकत पर दक्ष का वध कर डाला। भगवान शिव माता सती के जले हुए शव को लेकर पूरे पृथ्वी मे घूमने लगे। जिसके पश्चात माता के भाई अर्थात विष्णु भगवान ने अपने चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए। जो कि धरती पर गिरे।
जहां-जहां पर धरती पर गिरे वहां पर माता के शक्तिपीठ मंदिर उत्पन्न हो गए।बाद में भगवान शिव का क्रोध शांत होने पर भगवान शिव ने दक्ष के सिर पर बकरे का सिर लगा दिया। दक्ष को जीवनदान दिया।
राजा दक्ष को अपने गलती से बहुत ही ज्यादा शर्मिंदा होना पड़ा और उन्होंने भगवान शिव से क्षमा याचना की उसके बाद दक्ष ने घोषित कर दिया कि जून से अगस्त के बीच सावन के महीने में वह कनखल में रहा करेंगे।
यहां गंगा नदी के किनारे स्थित शक्ति कुंड को बेहद पवित्र माना जाता है क्योंकि यह वही प्राचीन कुंड है। जहां सती मां ने अपने प्राण त्यागी थे तथा महाभारत में भी उसका उल्लेख मिलता है।
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