एक समय की बात है उत्तराखंड के एक गांव में एक बूढ़ी महिला और उसकी बेटी रहती थी उन दोनों के पास गुजारा करने के लिए मात्र एक खेत ही थाI
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जहां पर काफल के कुछ पेड़ लगे थेI गर्मियों के दिनों में काफल को बेचकर ही उन दोनों का गुजारा चलता थाI एक बार जब बूढ़ी महिला एक टोकरी काफल तोड़कर लाई और उसको बाजार में ले जाना था
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लेकिन जानवरों का चारा लाने के लिए वह चली गई और अपनी पुत्री को बोल कर गई कि काफल का ध्यान रखना वापस आने पर वह उसे खुद कुछ काफल खाने को देगीI
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उसके बाद वह बूढ़ी औरत चली गई उसकी पुत्री ने काफल का ध्यान रखा उसका मन काफल खाने का था लेकिन मां की बात याद आने पर उसने उसे हाथ लगाए बिना एक साइड में जाकर सो गईI
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शाम को जब वह बूढ़ी औरत आई तो उसने देखा कि उसकी पुत्री साइड में सोई हुई है और का फल की टोकरी मैं काफल काफी कम हो गए हैंI
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तो उस बूढ़ी औरत को लगा कि मेरे मना करने के बावजूद भी मेरी पुत्री ने मेरा कहना ना मानकर का फल खाएI वह बूढ़ी औरत गुस्से में आकर अपनी सोई हुई पुत्री को मारने लगीI
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पुत्री सोई हुई थी उसे कुछ इस प्रकार की चोट लगी कि वह नींद में है मर गईI शाम को जब काफल की टोकरी दोबारा से फुल हो गई तो बूढ़ी औरत को समझ में आया कि उसकी पुत्री ने काफल नहीं खाए थेI
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वह काफल धूप के कारण कम हुए थे और शाम होते ही ठंडी हवाओं के कारण बहुत दोबारा से खिल उठे हैंI अब उस बूढ़ी औरत को बहुत पछतावा हुआ जिस कारण उसके प्राण निकल गएI
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आज भी उत्तराखंड में जब काफल पकने का समय आता है तो वहां पर एक चिड़िया बोल कर जाती है “काफल पाको मेनी चाखो” तब दूसरी चिड़िया बोलती है “पूरे हैं बेटी पूरे हैं” यह कहानी पूरे उत्तराखंड में मशहूर हैI